गीता माता -महात्मा गांधी
गीता-पदार्थ-कोश
(गीता के शब्दों का अर्थ और स्थल-निर्देश)
निवेदन
गीता जीती-जागती, जीवन देने वाली, अमर माता है। दूध पिलाकर पालने-पोसने वाली माता एक दिन धोखा देकर चली जायेगी। हम देखते हैं, असंख्य माताएं अपनी सन्तान को तूफान में से बचाने में असमर्थ रहती हैं, किन्तु गीता-माता का आश्रय लेने वाला भयंकर तूफान में से उबर जाता है। वह नित्य जाग्रत है। कभी धोखा नहीं देती; किन्तु जैसे बिना मांगे मां भी दूध नहीं पिलाती, वैसे ही गीतामाता भी बिना मांगे कुछ नहीं देती। वह किसी को अपनी गोद में लेने से पहले उसकी कठिन परीक्षा लेती है; पूर्ण भक्ति की अपेक्षा रखती है। शुष्क भक्ति से भी काम नहीं चलेगा। वह अनन्य भक्ति चाहती है। इसलिए जो लोग उसे सर्वार्पण करने को तैयार नहीं, उन्हें आश्रय देना वह बिल्कुल अस्वीकार कर देती है। भौतिक शास्त्र के बड़े-बड़े़ अभ्यासी उसके पीछे पागल हो जाते हैं , तब कहीं उन्हें उसका कुछ दर्शन होता है। एम.ए., बी.ए., होने वाले रात-दिन पढ़ते हैं, उस पर पैसा खर्च करते हैं शरीर सुखाते हैं। इस प्रकार प्रयत्न करने वालों में से कुछ ही लोग पहली बार में उत्तीर्ण होते हैं। उत्तीर्ण न होने वाले निराश न होकर बार-बार प्रयत्न करते हैं और उत्तीर्ण होने पर ही शांति से बैठते हैं। और अन्त में-? गीतामृत का पान करने के लिए तो इन प्रयत्नों की अपेक्षा बहुत अधिक प्रयत्न की आवश्यकता होनी चाहिए और है ही। परंतु उस अमृत- पान की गरज कितनों को है? गरज है तो कितने लोग जी-तोड़कर प्रयत्न करने को तैयार होते हैं? हम जानते हैं कि जैसे मैंने बताया है उस दृष्टि से, गीता-भक्ति करने वालों की संख्या नहीं के बराबर है, तो भी सब लोग यह कबूल करते है कि गीता सारे उपनिषदों का दोहन है। किसी भी हिन्दू को उसके ज्ञान से रहित नहीं होना चाहिए; किन्तु आजकल धर्म मात्र की कीमत घट गई है। उसके कारणों में जाने का यह अवसर नहीं है। मैंने तो, यह गीता-पदार्थ-कोश प्रकाशित हो रहा है, इस निमित्त से जिज्ञासुओं का ध्यान गीता रूपी रत्न की तरफ खींचने और उसका सदुपयोग कैसे हो सकता है, यह बताने का प्रयत्न इस निवेदन में किया है, वह सफल हो। सेगांव, वर्धा 24-9-36 |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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