गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 223

गीता माता -महात्मा गांधी

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अनासक्तियोग
अठारहवां अध्‍याय
संन्‍यासयोग


य इमं परमं गुह्यं मद्भक्‍तेष्‍वभिधास्‍यति।
भक्तिं मयि परां कृत्‍वा मामेवैष्‍यत्‍यसंशय:।।68।।

परंतु यह परम गुह्यज्ञान जो मेरे भक्‍तों को देगा वह मेरी परम भक्ति के कारण निसंस्‍देह मुझे ही पावेगा।  

न च तस्‍मान्‍मनुष्‍येषु कश्चिन्‍मे प्रियकृत्तम:।
भविता न च मे तत्‍मादन्‍य: प्रियतरो भुवि।।69।।

उसकी अपेक्षा मनुष्‍यों में मेरा कोई अधिक प्रिय सेवक नहीं है और पृथ्वी में उसकी अपेक्षा मुझे कोई अधिक प्रिय होने वाला भी नहीं है।

    
अध्‍येष्‍यंते च य इमं धर्म्‍यं संवादमावयो:।
ज्ञानयज्ञेन तेनाहमिष्‍ट: स्‍यामिति मे मति:।।70।।

हमारे इस धर्म संवाद का जो अभ्‍यास करेगा, वह मुझे यज्ञ द्वारा भजेगा, ऐसा मेरा मत है।

श्रद्धावाननसूयश्‍च श्रृणृयादपि यो नर:।
सोऽपि मुक्‍त: शुभांल्‍लोकान्‍प्राप्‍नुयात्‍पुण्‍यकर्मणाम्।।71।।

और जो मनुष्‍य द्वेष-रहित होकर श्रद्धापूर्वक केवल सुनेगा वह भी मुक्‍त होकर पुण्‍यवान जहाँ बसते हैं उस शुभ लोक को पावेगा।

टिप्‍पणी - इसमें तात्‍पर्य यह है कि जिसने इस ज्ञान का अनुभव किया है वही इसे दूसरे को दे सकता है। शुद्ध उच्‍चारण करके अर्थसहित सुना देने वालों के विषय में ये दोनों श्‍लोक नहीं है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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