गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
सत्रहवां अध्याय
श्रद्धात्रयविभागयोग
अदेशकाले यद्दानमपात्रेभ्यश्च दीयते। देश काल और पात्र का विचार किये बिना, बिना मान का, तिरस्कार से दिया हुआ दान तामसी कहलाता है। ऊँ तत्सदिति निर्देशो ब्रह्मणस्त्रिविध: स्मृत:। ब्रह्म का वर्णन ‘ऊँ तत्सत्’ इस तरह तीन प्रकार से हुआ है और इसके द्वारा पूर्वकाल में ब्राह्मण, वेद और यज्ञ निर्मित हुए। तस्मादोमित्युदाहृत्य यज्ञदानतप:क्रिया:। इसलिए ब्रह्मवादी ‘ऊँ’ का उच्चारण करके यज्ञ, दान और तप रूपी क्रियाएं सदा विधिवत करते हैं। तदित्यनभिसंधाय फलं यज्ञतप:क्रिया:। और मोक्षार्थी ‘तत्’ का उच्चारण करके फल की आशा रख बिना यज्ञ, तप और दान रूपी विविध क्रियाएं करते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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