गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 181

गीता माता -महात्मा गांधी

Prev.png
अनासक्तियोग
तेरहवां अध्याय
क्षेत्रक्षेत्रविभागयोग


यदा भूतपृथग्‍भावमेकस्‍थमनुपश्‍यति।
तत एव च विस्‍तारं ब्रह्म संपद्यते तदा।।30।।

जब वह जीवों का अस्तित्‍व पृथक होने पर भी एक में ही स्थित देखता है और इसलिए सारे विस्‍तार को उसी से उत्‍पन्‍न हुआ समझता है तब वह ब्रह्म को पाता है।

टिप्‍पणी- अनुभव से सब कुछ ब्रह्म में ही देखना ब्रह्म को प्राप्‍त करना है। उस समय जीव शिव से भिन्‍न नहीं रह जाता।

अनादित्‍वान्निर्गुणत्‍वात्‍परमात्‍मायमव्‍यय:।
शरीरस्थोऽपि कौन्‍तेय न करोति न लिप्‍यते।।31।।

हे कौंतेय! यह अविनाशी परमात्‍मा अनादि और निर्गुण होने के कारण शरीर में रहता हुआ भी न कुछ करता और न किसी से लिप्‍त होता है।

यथा सर्वगतं सौक्ष्म्‍यादाकाशं नोपलिप्‍यते।
सर्वत्रावस्थितो देहे तथात्‍मा नोपलिप्‍यते।।32।।

जिस प्रकार सूक्ष्‍म होने के कारण सर्वव्‍यापी आकाश लिप्‍त नहीं होता, वैसे सब देह में रहने वाला आत्मा लिप्‍त नहीं होता।

 
यथा प्रकाशयत्‍येक: कृत्‍स्‍नं लोकमिमं रवि:।
क्षेत्रं क्षेत्री तथा कृत्‍स्‍नं प्रकाशयति भारत।।33।।

जैसे एक ही सूर्य इस समूचे जगत को प्रकाश देता है, वैसे हे भारत! क्षेत्री समूचे क्षेत्र को प्रकाशित करता है।

 
क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोरेवमन्‍तरं ज्ञानचक्षुषा।
भूतप्रकृतिमोक्षं च ये विदुर्यान्ति ते परम्।।34।।

जो ज्ञान चक्षु द्वारा क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ का भेद और प्रकृति के बंधन से प्राणियों की मुक्ति कैसे होती है यह जानता है वह ब्रह्म को पाता है।

ॐ तत्‍सत्

इति श्रीमद्भगवद्गीता रूपी उपनिष्‍द् अर्थात ब्रह्म विद्यान्‍तर्गत योगशास्‍त्र के श्रीकृष्‍णार्जुनसंवाद का ʻक्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग̕ नामक तेरहवां अध्‍याय।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः