गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 180

गीता माता -महात्मा गांधी

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अनासक्तियोग
तेरहवां अध्याय
क्षेत्रक्षेत्रविभागयोग


यावत्‍संजायते किंचित्‍सत्‍वं स्‍थावर जंगमम्।
क्षेत्रक्षेत्रज्ञयसंयोगात्तद्विद्वि भरतर्षभ।।26।।

जो कुछ चर या अचर वस्‍तु उत्‍पन्‍न होती है वह, हे भरतर्षभ! क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के अर्थात प्रकृति और पुरुष के संयोग से उत्‍पन्‍न हुई जान।  

समं सर्वेषु भूतेषु तिष्‍ठन्‍तं परमेश्‍वरम्।
विनिश्‍यत्‍स्‍वविनश्‍यन्‍तं य: पश्‍यति स पश्‍यति।।27।।

समस्‍त नाशवान प्राणियों में अविनाशी परमेश्‍वर को समभाव से मौजूद जो जानता है वही उसका जानने वाला है।  

समं पश्‍यन्हि सर्वत्र समवस्थितमीश्‍वरम्।
न हिनस्‍त्‍यात्‍मनात्‍मानं ततो याति परां गतिम्।।28।।

जो मनुष्‍य ईश्वर को सर्वत्र समभाव से अवस्थित देखता है वह अपने-आपका घात नहीं करता और इससे परमगति को पाता है।

टिप्‍पणी- समभाव से अवस्थित ईश्वर को देखने वाला आप उसमें विलीन हो जाता है और अन्‍य कुछ नहीं देखता। इसलिए विकारवश न होकर मोक्ष पाता है; अपना शत्रु नहीं बनता।

प्रकृत्‍यैव च कर्माणि क्रियमाणानि सर्वश:।
य: पश्‍यति तथात्‍मानमकतर्तारं स पश्‍यति।।29।।

सर्वत्र प्रकृति ही कर्म करती है ऐसा जो समझता है और इसीलिए आत्मा को अकर्तारूप जानता है वही जानता है।

टिप्‍पणी- कैसे, जैसे कि सोते हुए मनुष्‍य का आत्मा निद्रा का कर्ता नहीं है, किंतु प्रकृति निद्रा का कर्म करती है। निर्विकार मनुष्‍य के नेत्र कोई गंदगी नहीं देखते। प्रकृति व्‍यभिचारणी नहीं है। अभिमानी पुरुष जब उसका स्‍वामी बनता है तब उस मिलाप में से विषय-विकार उत्‍पन्‍न होते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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