गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 179

गीता माता -महात्मा गांधी

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अनासक्तियोग
तेरहवां अध्याय
क्षेत्रक्षेत्रविभागयोग


उपद्रष्‍टानुमन्‍ता च भर्ता भोक्‍ता महेश्‍वर:।
परमात्‍मेति चाप्‍युकतो देहेऽस्मिन्‍पुरुष: पर:।।22।।

इस देह में स्थित जो परमपुरुष है वह सर्वसाक्षी, अनुमति देने वाला, भर्ता, भोक्‍ता, महेश्‍वर और परमात्‍मा भी कहलाता है।

टिप्‍पणी- प्रकृति को हम लोग लौकिक भाषा में माया के नाम से पुकारते हैं। पुरुष जीव है। माया अर्थात मूलस्‍वभाव के वशीभूत हो जीव सत्‍व, रजस या तमस से होने वाले कार्यों का फल भोगता है और इससे कर्मानुसार पुनर्जन्‍म पाता है।  

य एवं वेत्ति पुरुषं प्रकृतिं च गुणै: सह।
सर्वथा वर्तमानोऽपि न स भूयोऽजियते।।23।।

जो मनुष्‍य इस प्रकार पुरुष और गुणमयी प्रकृति को जानता है, वह सब प्रकार कार्य करता हुआ भी फिर जन्‍म नहीं पाता।

टिप्‍पणी- 2, 9, 12 और अन्‍यान्‍य अध्‍यायों की सहायता से हम जान सकते हैं कि यह श्‍लोक स्‍वेच्‍छाचार का समर्थन करने वाले नहीं है, बल्कि भक्ति की महिमा बतलाने वाला है। कर्म-मात्र जीवन के लिए बंधनकर्ता हैं, किन्‍तु यदि वह सब कर्म परमात्‍मा को अपर्ण कर दे तो वह बंधनयुक्‍त हो जाता है और इस प्रकार जिसमें से कर्तृत्‍वरूपी अहंभाव नष्‍ट हो गया है और जो अंतर्यामी को चौबीस घंटे, पहचान रहा है। वह पाप कर्म कर ही नहीं सकता। पाप का मूल ही अभिमान है। जहाँ ʻमैं̕ नहीं है वहाँ पाप नहीं है। यह श्‍लोक पाप कर्म करने की युक्ति बतलाता है।  

ध्‍यानेनात्‍मनि पश्‍यन्ति केचिदात्‍मानमात्‍मना।
अन्‍ये सांख्‍येन योगेन कर्मयोगेन चापरे।।24।।

कोई ध्‍यान-मार्ग से आत्मा द्वारा आत्‍मा को अपने में देखना है कितने ही ज्ञान-मार्ग से और दूसरे कितने ही कर्म मार्ग से।  

अन्‍ये त्‍वेमवजानन्‍त: श्रुत्‍वान्‍येभ्‍य: उपासते।
तेऽपि चातितरन्‍त्‍येव मृत्‍युं श्रुतिपरायणा:।।25।।

और कोई इन मार्गों को न जानने के कारण दूसरों से परमात्‍मा के विषय में सुनकर, सुने हुए पर ब्रह्म रखकर और उसमें परायण रहकर उपासना करते हैं और वे भी मृत्‍यु को तर जाते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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