गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 177

गीता माता -महात्मा गांधी

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अनासक्तियोग
तेरहवां अध्याय
क्षेत्रक्षेत्रविभागयोग


सर्वेन्द्रियगुणाभासं सर्वेन्द्रियविवजितम्।
आसक्‍तं सर्वभृच्‍चैव निर्गुणं गुणभोक्‍तृ च।।14।।

सब इंद्रियों के गुणों का आभास उसमें मिलता है तो भी वह स्‍वरूप इंद्रिय-रहित और सबसे अलिप्‍त है तथापि सबको धारण करने वाला है। वह गुण-रहित होने पर भी गुणों का भोक्‍ता है।  

बहिरन्‍तश्‍च भूतानामचरं चरमेव च।
सूक्ष्‍मत्‍वात्‍दविज्ञेयं दूरस्‍थं चान्ति के च तत्।।15।।

वह भूतों के बाहर है और अंदर भी है। वह गतिमान है और स्थिर भी है। सूक्ष्‍म होने के कारण वह अविज्ञेय है। वह दूर है और समीप भी है।

टिप्‍पणी- जो उसे पहचानता है वह उसके अंदर है। गति और स्थिरता, शांति और अशांति हम लोग अनुभव करते हैं। और सब भाव उसी में से उत्‍पन्‍न होते हैं, इसलिए वह गतिमान और स्थिर है।

  
अविभक्‍तं च भूतेषु विभक्‍तमिव च स्थितम्।
भूतभतृं च तज्‍ज्ञेयं ग्रसिष्‍णु प्रभविष्‍णु च।।16।।

भूतों में वह अविभक्‍त है और विभक्‍त-सरीखा भी विद्यमान है। यह जानने योग्‍य[1] प्राणियों का पालक, नाशक और कर्ता है।

ज्‍योतिषामपि तज्ज्योतिस्‍तमस: परमुच्‍यते।
ज्ञानं ज्ञेयं ज्ञानगम्‍यं हृदि सर्वस्‍य विष्ठितम्।।17।।

ज्‍योतियां की भी वह ज्‍योति है, अंधकार से वह परे कहा जाता है। ज्ञान वही है, जानने योग्‍य वही है और ज्ञान से जो प्राप्‍त होता है वह भी वही है। वह सबके हृदय में मौजूद है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ब्रह्म

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गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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