गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
तेरहवां अध्याय
क्षेत्रक्षेत्रविभागयोग
महाभूतान्यहंकारो बुद्धिरव्यक्तमेव च। महाभूत, अहंता, बुद्धि, प्रकृति, दस इंद्रियों, एक मन, पाँच विषय, इच्छा, द्वेष, सुख, दु:ख चेतन शक्ति, धृति - यह अपने विकारोंसहित क्षेत्र संक्षेप में कहा है। टिप्पणी- महाभूत पांच हैं—पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश। अहंकार अर्थात शरीर के प्रति विद्यमान अहंता, अहंपना। अव्यक्त अर्थात अदृश्य रहने वाली माया, प्रकृति। दस इंद्रियों में पांच ज्ञानेन्द्रिया—नाक, कान, आंख जीभ और चाम, तथा पांच कर्मेन्द्रियां- हाथ, पैर मुंह और दो गुहयेन्द्रियां। पांच गोचर अर्थात पांच ज्ञानेंद्रियों के पांच - सूँघना, सुनना, देखना, चखना और छूना। संघात अर्थात शरीर के तत्वों की परस्पर सहयोग करने की शक्ति। धृति अर्थात धैर्यरूपी सूक्ष्म गुण नहीं, किंतु इस शरीर के परमाणुओं का एक दूसरे से सटे रहने का गुण। यह अहंभाव के कारण ही संभव है और यह अहंता अव्यक्त प्रकृति में विद्यमान है। मोह रहित मनुष्य इस अहंता का ज्ञानपूर्वक त्याग करता है और इस कारण मृत्यु के समय दूसरे आघात से वह दु:ख नहीं पाता। ज्ञानी-अज्ञानी सबको, अंत में तो, इस विकारी क्षेत्र का त्याग किये ही निस्तार है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज