गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
बारहवां अध्याय
भक्तियोग
अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्र: करुण एव च। जो प्राणी मात्र के प्रति द्वेष रहित, सबका मित्र दयावान, ममता रहित, अहंकार रहित, सुख-दु:ख में समान, क्षमावान, सदा संतोषी, योगयुक्त, इंद्रिय निग्रही और दृढ़निश्चयी है और मुझमें जिसने अपनी बुद्धि और मन अर्पण कर दिया है, ऐसा मेरा भक्त मुझे प्रिय है। जिससे लोग उद्वेग नहीं पाते, जो लोगों से उद्वेग नहीं पाता, जो हर्ष, क्रोध, ईर्ष्या, भय, उद्वेग से मुक्त है, वह मुझे प्रिय है। अनपेक्ष: शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथ:। जो इच्छा रहित है, पवित्र है, दक्ष[1] है, तटस्थ चिंता-रहित है, संकल्प मात्र का जिसने त्याग किया है वह मेरा भक्त है, वह मुझे प्रिय है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सावधान
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