गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 172

गीता माता -महात्मा गांधी

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अनासक्तियोग
बारहवां अध्याय
भक्तियोग


अद्वेष्‍टा सर्वभूतानां मैत्र: करुण एव च।
निर्ममो निरहंकार: समदु:ससुख: क्षमी।।13।।
संतुष्‍ट: सततं योगी यतात्‍मा दृढ़निश्‍चय:।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्‍त: स में प्रिय:।।14।।

जो प्राणी मात्र के प्रति द्वेष रहित, सबका मित्र दयावान, ममता रहित, अहंकार रहित, सुख-दु:ख में समान, क्षमावान, सदा संतोषी, योगयुक्‍त, इंद्रिय निग्रही और दृढ़निश्‍चयी है और मुझमें जिसने अपनी बुद्धि और मन अर्पण कर दिया है, ऐसा मेरा भक्त मुझे प्रिय है।

 
यस्‍मान्‍नोद्विजते लोको लोकान्‍नोद्विजते च य:।
हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्‍तो य: स च में प्रिय:।।15।।

जिससे लोग उद्वेग नहीं पाते, जो लोगों से उद्वेग नहीं पाता, जो हर्ष, क्रोध, ईर्ष्‍या, भय, उद्वेग से मुक्‍त है, वह मुझे प्रिय है।  

अनपेक्ष: शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्‍यथ:।
सर्वारम्‍भपरित्‍यागी यो मद्भक्‍त: स मे प्रिय:।।16।।

जो इच्‍छा रहित है, पवित्र है, दक्ष[1] है, तटस्‍थ चिंता-रहित है, संकल्‍प मात्र का जिसने त्‍याग किया है वह मेरा भक्‍त है, वह मुझे प्रिय है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सावधान

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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