गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 168

गीता माता -महात्मा गांधी

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अनासक्तियोग
ग्‍यारहवां अध्याय
विश्‍वरूपदर्शनयोग


नाहं वेदैर्न तपसा न दानेन न चेज्‍यया।
शक्‍य एवंविधो द्रष्‍टृं दृष्‍टवानसि मां यथा।।53।।

जो मेरे दर्शन तूने किये हैं वह दर्शन न वेद से, न तप से, न दान से अथवा न यज्ञ से हो सकते हैं।  

भवक्‍या त्‍वनन्‍यया शक्‍य अहमेवंविधोऽर्जुन।
ज्ञातुं द्रष्‍टुं च तत्‍वेन प्रवेष्‍टुं च परंतप।।54।।

परंतु हे अर्जुन! हे परंतप! मेरे संबंध में ऐसा ज्ञान, ऐसे मेरे दर्शन और मुझमें वास्‍तविक प्रवेश केवल अनन्‍य भक्ति से ही संभव है।  

मत्‍कर्षकृन्‍मत्‍परमो मद्भक्‍त: सङ्‌गवर्जित:।
निर्वेर: सर्वभूतेषु य: स मामेति पाण्‍डव।।55।।

हे पांडव! जो सब कर्म मुझे समर्पण करता है, मुझे में परायण रहता है, मेरा भक्त बनता है, आसक्ति का त्‍याग करता है और प्राणीमात्र में द्वेष-रहित होकर रहता है, वह मुझे पाता है।

ॐ तत्‍सत्

इति श्रीमद्भगवद्गीतारूपी उपनिषद् अर्थात ब्रह्म विद्यान्‍तर्गत योग शास्‍त्र के श्री कृष्‍णार्जुन-संवाद का ʻविश्‍वरूपदर्शन-योग̕ नामक ग्‍यारहवां अध्‍याय।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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