गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
ग्यारहवां अध्याय
विश्वरूपदर्शनयोग
मा ते व्यथा मा च विमूढभावो यह मेरा विकराल रूप देखकर तू घबरा मत, मोह में मत पड़। डर छोड़कर शांति चित्त हो और यह मेरा परिचित रूप फिर देख। संजय उवाच संजय ने कहा- यों वासुदेव ने अर्जुन से कहकर अपना रूप फिर दिखाया और फिर शांत मूर्ति धारण करके भयभीत अर्जुन को उस महात्मा ने आश्वासन दिया। अर्जुन उवाच अर्जुन बोले- हे जनार्दन! यह आपका सौम्य मानव स्वरूप देखकर अब मैं शांत हुआ हूँ और ठिकाने आ गया हूँ। श्रीभगवानुवाच श्रीभगवान बोले- मेरा जो रूप तूने देखा उसके दर्शन बहुत दुर्लभ हैं। देवता भी वह रूप देखने को तरसते रहते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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