गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 16

गीता माता -महात्मा गांधी

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गीता-बोध
चौथा अध्याय

यज्ञ-3

व्‍यक्तिगत पत्रों में से

13-11-30

चर्खे और फ्रेंच के विषय में तुमने जो लिखा है, उसमें भी सिद्वान्‍त-दृष्टि से त्रुटि पाता हूँ। चर्खे को सर्वार्पण करने पर उस समय को दूसरे काम में नहीं लगाया जा सकता। कोई बात करने आ जाय तो विवेक के खयाल से कर सकते हैं, पर बातों के बजाय कुछ सीखा ही जाय तो उसमें क्‍या बुराई है, यह न्‍याय यहाँ नहीं लग सकता। बातों में से तो जब चाहे छुट्टी पाई जा सकती है। बात करने वाला भी बहुत देर तक बैठकर बातें नहीं करेगा। पर शिक्षक बन जाने पर तो वह पूरा समय देने को मजबूर हो जाता है। यह सब के लिए है जबकि चर्खे को यज्ञ रूप में चलाते हों, अपने विषय में मैं इस सत्‍य का प्रत्यक्ष अनुभव करता हूँ। चर्खा चलाते समय जब अन्‍य विचारों में पड़ता हूँ तब गति पर, नंबर पर, समानता पर, उसका असर पड़ता है।

कल्‍पना करो कि रोम्‍या रोलां या बिथोवन पियानो पर बैठे हैं। उस पर वे ऐसे तन्‍मय हो जाते हैं कि बात नहीं कर सकते, न मन में अन्‍य विचार कर सकते हैं, कला और कलाकार पृथक नहीं होते। यदि यह पियानो के लिए सत्‍य हो तोफिर चर्खा यज्ञ के लिए कितना अधिक सत्‍य होना चाहिए? यह विचार जाने दो कि यह आचरण आज ही संभव नहीं है। अपने विचार-क्षेत्र को बावन तोला पाव रत्ती शुद्ध रख सकें तो तदनुसार आचरण किसी दिन हो ही जायगा। यह न समझो कि इस में गुजरे हुओं की आलोचना है। मैं खुद बहुत अधूरा हूं, मुझे आलोचना करने का हक भी कहाँ है? जितना जानता हूं, उस पर मै खुद कहाँ पूरी तरह चलता हूं? चलता होता तो कब का चर्खासात लाख गांवों में गूंज जाता। आज भी जो जानता हूं, उसके अनुसार सौ फीसदी चल सकूं तो मेरे यहाँ बैठे भी चर्खा हवा की तरह फैले। पर यदि मालवीय जी भागवत पुराण की चर्चा से थकें तो मैं चर्खा-संगीत की बातों से थकूं। चर्खा-पुराण तो कैसे कहूं? पुराण तो भविष्‍य की पीढ़ी रचेगी बशर्ते कि हम कुछ रचने लायक कर जायंगे। आज तो हम इसका टूटा-फूटा संगीत रच रहे हैं। कैसा सुर निकलता है, यह हमारी तपश्‍चर्या और हमारे समर्पण पर निर्भर रहेगा।

...... मुझे आदर्श तो यह लगता है कि यज्ञ के समय मौन हो।उस समय जो विचार हो, वह चर्खे, या कहो खादी संबंधी अथवा रामनाम का हो। रामनाम को विस्‍तृत अर्थ में लेना चाहिए।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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