गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
दसवां अध्याय
विभूति योग
श्रीभगवानुवाच श्रीभगवान बोले- हे कुरुश्रेष्ठ! अच्छा, मैं अपनी मुख्य-मुख्य दिव्य विभूतियां तुझे कहूंगा। उनके विस्तार का अंत तो है ही नहीं। अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थित:। हे गुडाकेश! मैं सब प्राणियों के हृदय में विद्यमान आत्मा हूँ। मैं ही भूतमात्र का आदि, मध्य और अंत हूँ। आदित्यों में विष्णु मैं हूं, ज्योतियों में जगमगाता सूर्य मैं हूं, वायुओं में मरीचि मैं हूं, नक्षत्रों में चंद्र मैं हूँ। वेदों में सामवेद मै हूं, देवों में इंद्र मैं हूं, इंद्रियों में मन मैं हूँ और प्राणियों का चेतन मैं हूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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