गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
दसवां अध्याय
विभूति योग
तेषां सततयुक्तागां भजतां प्रीतिपूर्वकम्। इस प्रकार मुझमें तन्मय रहने वालों को और मुझे प्रेम से भजने वालों को मैं ज्ञान देता हूँ और उससे वे मुझे पाते हैं। तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तम:। उन पर दया करके उनके हृदय में स्थित मैं ज्ञानरूपी प्रकाशमय दीपक से उनके अज्ञानरूपी अंधकार का नाश करता हूँ। अर्जुन उवाच अर्जुन बोले- हे भगवान! आप परम ब्रह्म हैं, परम धाम हैं, परम पवित्र हैं। समस्त ऋषि, देवर्षि नारद, असित, देवल और व्यास आपको अविनाशी, दिव्यपुरुष, आदिदेव, अजन्मा, ईश्वर रूप मानते हैं और आप स्वयं भी वैसा ही कहते हैं। हे केशव! आप जो कहते हैं उसे मैं सत्य मानता हूँ। हे भगवान! आपके स्वरूप को न देव जानते हैं न दानव। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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