गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
सातवां अध्याय
ज्ञानविज्ञान योग
जरामरणमोक्षाय मामाश्रित्य यतन्ति ये। जो मेरा आश्रय लेकर जरा और मरण से मुक्त होने का प्रयत्न करते है वे पूर्णब्रह्म को, अध्यात्म को और अखिल कर्म को जानते हैं। साधिभूताधिदैवं मां साधियज्ञं च ये विदु:। अधिभूत, अधिदैव और अधियज्ञ युक्त मुझे जिन्होंने पहचाना है, वे समत्व को पाये हुए मुझे मृत्यु के समय भी पहचानते हैं। टिप्पणी- अधिभूतादि का अर्थ आठवें अध्याय में आता है। इस श्लोक का तात्पर्य यह है कि इस संसार में ईश्वर के सिवा और कुछ भी नहीं है और समस्त कर्मों का कर्ता-भोक्ता वह है, ऐसा समझकर जो मृत्यु के समय शांत रहकर ईश्वर में ही तन्मय रहता है तथा कोई वासना उस समय जिसे नहीं होती, उसने ईश्वर को पहचाना है और उसने मोक्ष पाई है। ॐ तत्सत् इति श्रीमद्भगवद्भगीतारूपी उपनिषद् अर्थात ब्रह्मविद्यान्तर्गत योगशास्त्र के श्रीकृष्णार्जुनसंवाद का ʻज्ञानविज्ञान योगʼ नामक सातवां अध्याय। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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