गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
छठा अध्याय
ध्यानयोग
प्रयत्नाद्यतमानस्तु योगी संशुद्धकिल्विष:। लगन से प्रयत्न करता हुआ योगी पाप से छूटकर अनेक जन्मों से विशुद्ध होता हुआ परमगति को पाता है। तपस्विभ्योऽधिको योगी तपस्वी से योगी अधिक है, ज्ञानी से भी वह अधिक माना जाता है, वैसे ही कर्मकांडी से वह अधिक है, इसलिए हे अर्जुन! तू योगी बन। टिप्पणी- यहाँ तपस्वी की तपस्या फलेच्छायुक्त है। ज्ञानी से मतलब अनुभव ज्ञानी से नहीं है। योगिनामपि सर्वेषां मद् गतेनान्तरात्मना। सारे योगियों में भी उसे मैं सर्वश्रेष्ठ योगी मानता हूँ जो मुझमें मन पिरोकर मुझे श्रद्धापूर्वक भजता है। ॐतत्सत् इति श्रीमद्भागवद्गीतारूपी उपनिषद् अर्थात ब्रह्मविद्यान्तर्गत योगशास्त्र के श्री कृष्णार्जुन-संवाद का ʻध्यानयोग̕ नामक छठा अध्याय। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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