गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
छठा अध्याय
ध्यानयोग
अर्जन उवाच अर्जुन बोले- हे मधुसूदन ! यह[1] योग जो आपने कहा, उसकी स्थिरता मैं चंचलता के कारण नहीं देख पाता। चञ्चलं हि मन: कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढ़म्। क्योंकि, हे कृष्ण! मन चंचल ही है, मनुष्य को मथ डालता है और बड़ा बलवान है। जैसे वायु का दबाना बहुत कठिन है वैसे मन का वश करना भी मैं कठिन मानता हूँ। श्रीभगवानुवाच श्रीभगवान बोले- हे महाबाहो! सच है कि मन चंचल होने के कारण वश में करना कठिन है। पर हे कौंतेय! अभ्यास और वैराग्य से वह वश में किया जा सकता है। मेरा मत है कि जिसका मन अपने वश में नहीं है, उसके लिए योग साधना बड़ा कठिन है; पर जिसका मन अपने वश में है और जो यत्नवान है वह उपाय द्वारा साध सकता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ समत्वरूपी
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