गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 110

गीता माता -महात्मा गांधी

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अनासक्तियोग
पांचवां अध्याय
कर्मसंन्‍यासयोग


कामक्रोधवियुक्‍तानां यतीनां यतचेतसाम्।
अभितो ब्रह्मनिर्वाणं वर्तते विदितात्‍मनाम्।।26।।

जो अपने को पहचानते हैं, जिन्‍होंने काम-क्रोध को जीता है और जिन्‍होंने मन को वश किया है, ऐसे यतियों को सर्वत्र ब्रह्म निर्वाण ही है।

स्‍पर्शान्‍कृत्‍वा वहिर्वाह्यांश्‍चक्षुश्‍चैवान्‍तरे भ्रुवो:।
प्राणापानौ समौ कृत्‍वा नासाभ्‍यन्‍तरचारिणौ।।27।।
यतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मुनिर्मोक्षपरायण:।
विगतेच्‍छाभयक्रोधो य: सदा मुक्‍त एव स:।।28।।

बाह्य विषय-भोगों का बहिष्‍कार करके, दृष्टि को भृकुटी के बीच में स्थिर करके, नासिका द्वारा आने-जाने वाले प्राण और अपान वायु की गति को एक समान रखकर, इंद्रिय, मन और बुद्धि को वश में करके तथा इच्‍छा, भय और क्रोध से रहित होकर जो मुनि मोक्षपरायण रहता है,वह सदा मुक्‍त ही है।

टिप्‍पणी- प्राणवायु अंदर से बाहर निकलने वाली और अपान बाहर से अंदर जाने वाली वायु है। इन श्‍लोकों में प्राण- यामादि यौगिक क्रियाओं का समर्थन है। प्राणायामादि तो बाह्य कियाएं हैं और उनका प्रभाव शरीर को स्‍वस्‍थ रखने और परमात्‍मा के रहने योग्‍य मंदिर बनाने तक ही परिमित है। भोगी का साधारण व्‍यायामादि से जो काम निकलता है, वही योगी का प्राणायामादि से निकलता है। योगी के व्‍यायामादि उसकी इद्रियों को उत्तेजित करने में सहायता पहुँचाते हैं। प्राणायामादि योगी के शरीर को निरोगी और कठिन बनाने पर भी, इंद्रियों को शांत रखने में सहायता करते हैं आजकल प्राणायामादि की विधि बहुत ही कम लोग जानते है और उनमें भी बहुत थोडे़ उसका सदुपयोग करते हैं। जिसने इन्द्रिय, मन और बुद्धि पर अधिक नहीं तो प्राथमिक विजय प्राप्‍त की है, जिसे मोक्ष की उत्‍कट अभिलाषा है, जिसने रागद्वेषादि को जीतकर भय को छोड़ दिया है, उसे प्राणायामादि उपयोगी और सहायक होते हैं, अंत: शौच-रहित प्राणायामादि बंधन का एक साधन बनकर मनुष्‍य को मोह-कूप में अधिक नीचे ला जा सकते हैं, ले जाते हैं, ऐसा बहुतों का अनुभव है। इससे योगींद्र पतंजलि ने यम-नियम को प्रथम स्‍थान देकर उसके साधक के लिए ही मोक्षमार्ग में प्राणायामादि को सहायक माना है।

  • यम पांच हैं- अहिंसा, सत्‍य, अस्‍तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह।
  • नियम पांच हैं- शौच, संतोष, तप, स्‍वाध्‍याय और ईश्वर-प्राणिधान।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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