गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 107

गीता माता -महात्मा गांधी

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अनासक्तियोग
पांचवां अध्याय
कर्मसंन्‍यासयोग


न कृतैत्‍वं न कर्माणि लोकस्‍य सृजति प्रभु:।
न कर्मफलसंयोगं स्‍वभावस्‍तु प्रवर्तते।।14।।

जगत का प्रभु न कर्त्तापन को रचता है, न कर्म रचता है, न कर्म और फल का मेल साधता है। प्रकृति ही सब करती है।

टिप्‍पणी- ईश्वर कर्ता नहीं है। कर्म का नियम अटल और अनिवार्य है और जो जैसा करता है उसको वैसा भरना ही पड़ता है। इसी में ईश्वर की महान दया और उसका न्‍याय विद्यमान है। शुद्ध न्‍याय में शुद्ध दया है। न्‍याय की विरोधी दया, दया नहीं है, बल्कि क्रूरता है। पर मनुष्‍य त्रिकालदर्शी नहीं है। अत: उसके लिए तो दया-क्षमा का याचक है। वह दूसरे का न्‍याय का पात्र बना हुआ क्षमा का याचक है। वह दूसरे का न्‍याय क्षमा से ही चुका सकता है। क्षमा के गुण का विकास करने पर ही अंत में अकर्त्ता योगी समतावान कर्म में कुशल बनता है।

नादत्ते कस्‍यचित्‍पापं न चैव सुकृतं विभु:।
अज्ञानेनावृतं ज्ञानं तेन मुह्यन्ति जन्‍तव:।।15।।

ईश्‍वर किसी के पाप या पुण्‍य को नहीं ओढ़ता। अज्ञान द्वारा ज्ञान के ढक जाने से लोग मोह में फंसते हैं।

टिप्‍पणी- अज्ञान से ʻमैं करता हूं̕ इस वृत्ति से मनुष्‍य कर्म बन्‍धन बांधते हुए भी भले-बुरे फल का आरोप ईश्वर पर करता है, यह मोह-जाल है।

ज्ञानेन तु तदज्ञानं येषां नाशितमात्‍मन:।
तेषामादित्‍यवज्‍ज्ञानं प्रकाशयति तत्‍परम्।।16।।

परंतु जिनके अज्ञान का आत्‍मज्ञान द्वारा नाश हो गया है, उनका वह सूर्य के समान, प्रकाशमय ज्ञान परम तत्‍व का दर्शन कराता है।

तद्बुद्धयस्‍तदात्‍मानस्‍तन्निष्ठास्‍तत्‍परायणा:।
गच्‍छन्‍त्‍यपुनरावृत्तिं ज्ञाननिर्धूतकाल्‍मषा:।।17।।

ज्ञान द्वारा जिनके पाप धूल गय हैं, वे ईश्वर का ध्‍यान धरने वाले, तन्‍मय हुए, उसमें स्थिर रहने वाले, उसी को सर्वस्‍व मानने वाले लोग मोक्ष पाते है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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