गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 106

गीता माता -महात्मा गांधी

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अनासक्तियोग
पांचवां अध्याय
कर्मसंन्‍यासयोग


ब्रह्मण्‍याधाय कर्माणि सङ्‌गत्‍यक्‍त्‍वा करोति य:।
लिप्‍यते न स पापेन पदमपत्रमिवाम्‍भसा।।10।।

जो मनुष्‍य कर्मों को ब्रह्मार्पण करके आसक्ति छोड़कर आचरण करता है वह पाप से उसी तरह अलिप्‍त रहता है जैसे पानी में रहने वाला कमल अलिप्‍त रहता है।

कायेन मनसा बुद्धया केवलैरिन्द्रियैरपि।
योगिन: कर्म कुर्वन्ति सङ्‌ग त्‍यक्‍त्‍वात्‍मशुद्धये।।11।।

शरीर से, मन से, बुद्धि से या केवल इंद्रियों से भी योगीजन आसक्ति-रहित होकर आत्‍म-शुद्धि के लिए कर्म करते हैं।

युक्‍त: कर्मफलं त्‍यक्‍त्‍वा शान्तिमाप्‍नोति नैष्ठिकीम्।
अयुक्‍त: कामकारेण फले सक्‍तो निबध्‍यते।।12।।

समतावान कर्मफल का त्‍याग करके परम शान्ति पाता है। अस्थिर चित्त कामना युक्‍त होने के कारण फल में फंसकर बंधन में रहता है।

सर्वकर्माणि मनसा संन्‍यस्‍यास्‍ते सुखं वशी।
नवद्वारे पुरे देही नैव कुर्वन्‍न कारयन्।।13।।

संयमी पुरुष मन से सब कर्मों का त्‍याग करके नवद्वार वाले नगर रूपी शरीर में रहते हुए भी, कुछ न करता, न कराता हुआ सुख से रहता है।

टिप्‍पणी- दो नाक, दो कान, दो आंखें, मलत्‍याग के दो स्‍थान और मुख, शरीर के नौ मुख्‍य द्वार हैं। वैसे तो त्‍वचा के असंख्‍य छिद्रमात्र दरवाजे ही हैं। इन दरवाजों का चौकीदार यदि इनमें आने-जाने वाले अधिकारियों को ही आने-जाने देकर अपना धर्म पालता है तो उसके लिए कहा जा सकता है कि वह, यह आवाजाही होते रहने पर भी, उसका हिस्‍सेदार नहीं बल्कि केवल साक्षी है, इससे वह न करता है, न कराता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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