गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 100

गीता माता -महात्मा गांधी

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अनासक्तियोग
चौथा अध्याय
ज्ञानकर्मसंन्‍यासयोग


अपाने जुह्वति प्राणं प्राणेऽपानं तथापरे।
प्राणापानगती रुद्ध्‍वा प्राणायामपरायणा:।।29।।

कितने ही प्राणायाम में तत्‍पर रहने वाले अपान को प्राण-वायु में होमते हैं, प्राण को अपान में होमते हैं अथवा प्राण और अपान दोनों का अवरोध करते हैं।

टिप्‍पणी- ये तीन प्रकार के प्राणायाम हैं - रेचक, पूरक और कुंभक। संस्‍कृत में प्राणवायु का अर्थ गुजराती और हिंदी की अपेक्षा उलटा है। वहाँ प्राणवायु अंदर से बाहर निकलने वाली वायु को कहते हैं। इस प्रकार से हम जिसे अंदर खींचते हैं उसे प्राणवायु (आक्‍सीजन) कहते हैं।

अपरे नियताहारा: प्राणान्‍प्राणेषु जुह्वति।
सर्वेऽप्‍येते यज्ञविदो यज्ञक्षपतिकल्मषा:।।30।।

इसके सिवा दूसरे आहार का संयम करके प्राणों को प्राण में होमते हैं। यज्ञों द्वारा अपने पापों को क्षीण करने वाले ये सब यज्ञ के जानने वाले हैं।

यज्ञशिष्‍टामृतभुजो यान्ति ब्रह्म सनातनम्।
नायं लोकोऽस्‍त्‍ययज्ञस्‍य कुतोऽन्‍य: कुरुसत्तम।।31।।

हे कुरुसत्तम! यज्ञ से बचा हुआ अमृत खाने वाले लोग सनातन ब्रह्म को पाते हैं। यज्ञ न करने वाले के लिए यह लोक नहीं है तो परलोक तो हो ही कहाँ से सकता है।

एवं बहुविधा यज्ञा वितता ब्रह्मणो मुखे।
कर्मजान्विद्धि तान्‍सर्वानेवं ज्ञात्‍वा विमोक्ष्‍यसे।।32।।

इस प्रकार वेद में अनेक प्रकार के यज्ञों का वर्णन हुआ है। इन सबको कर्म से उत्‍पन्‍न हुआ जान। इस प्रकार सबको जानकर तू मोक्ष पावेगा।

टिप्‍पणी- यहाँ कर्म का व्‍यापक अर्थ है। अर्थात शारीरिक, मानसिक और आत्मिक। ऐसे कर्म के बिना यज्ञ नही हो सकता। यज्ञ बिना मोक्ष नहीं होता। इस प्रकार जानना और तदनुसार आचरण करना, इसका नाम यज्ञों का पालना है। तात्‍पर्य यह कि मनुष्‍य अपने शरीर, बुद्धि और आत्मा को प्रभुप्रीत्‍यर्थ - लोकसेवार्थ काम में न लावे तो वह चोर ठहरता है और मोक्ष के योग्‍य नहीं बन सकता। केवल बुद्धि शक्ति को ही काम में लावे और शरीर तथा आत्‍मा को चुरावे तो वह पूरा याज्ञिक नहीं है। इन शक्तियों को प्राप्‍त किए बिना उसका परोपकारार्थ उपयोग नहीं हो सकता। इ‍सलिए आत्‍म-शुद्धि के बिना लोकसेवा असंभव है। सेवक को शरीर, बुद्धि और आत्‍मा अर्थात नीति, तीनों का समान रूप से विकास करना कर्त्तव्‍य है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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