गीता-प्रबंध -श्री अरविन्द23.निर्वाण और संसार में कर्म
उसी ऐक्य में सब कुछ आ जाता है तथा सब कुछ अपने रूप से ऊपर उठकर परम भागवत अर्थ को प्राप्त हो जाता है। परंतु योगियों में भक्त ही सबसे श्रेष्ठ होता है। ‘‘सब योगियों में वह योगी जो अपनी अंतरात्मा को मुझे सौंप देता है और श्रद्धा तथा प्रीति से मेरा भजन करता है, उसे मैं अपने साथ योग में सबसे अधिक युक्त समझता हूँ।”[2]गीता के प्रथम षट्क का यही अंतिम वचन है और इसीमें बाकी जो कुछ अभी नहीं कहा गया है और जो कहीं भी पूर्णतया नहीं कहा गया है उसका बीज मौजूद है। वह सदा कुछ-कुछ रहस्यमय और गुह्य ही रहता है-परम अध्यात्मिक रहस्य, भगवत रहस्य। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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