गीता-प्रबंध
2.भगवद्गुरु
यह बात भी ज्ञात है कि ईसा के जन्म होने से पहले की शताब्दियों में श्रीकृष्ण और अर्जुन पूजे जाते थे; और यह मान लेने का कुछ कारण है कि यह पूजा किसी ऐसी धार्मिक या दार्शनिक परंपरा के कारण ही होती होगी, जहाँ से गीता ने अपने बहुत-से तत्त्वों को, यहाँ तक कि ज्ञान, कर्म और भक्ति के समन्वय की भित्ति को भी लिया होगा, और शायद यह भी माना जा सकता है के ये मानव श्रीकृष्ण ही संप्रदाय के प्रवर्तक, पुनः संस्थापक या कम-से-कम कोई पूर्वाचार्य रहे होंगे। इसलिये गीता का बाह्य रूप चाहे कुछ भी बदला भी हो तो भी यह भारतीय विचारधारा के रूप में श्रीकृष्ण के ही उपदेश का फल है और इस उपदेश का ऐतिहासिक श्रीकृष्ण के साथ तथा अर्जुन और कुरुक्षेत्र के युद्ध के साथ संबंध केवल कवि की भी कल्पना ही नहीं है। महाभारत में श्रीकृष्ण एक ऐतिहासिक व्यक्ति हैं और अवतार भी; इनकी उपासना और अवतार होने की मान्यता देश में उस समय तक प्रस्थापित हो चुकी थी जब ईसा के पूर्व ( पांचवी और पहली शताब्दी के बीच में ) महाभारत की प्राचीन कहानी और कविता का महाकाव्य-परंपरा ने अपना वर्तमान रूप धारण किया। इस काव्य में अवतार की बाल-वृन्दावन-लीला की कथा या किंवदंती का भी संकेत है जिसे पुराणों ने इतने प्रबल और सतेज आध्यात्मिक प्रतीक के रूप में वर्णित किया गया है कि उसका भारत के धार्मिक मन पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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