गीता कर्म जिज्ञासा 27

इस दृष्टि से विचार करने पर मालूम होता है कि धर्म-अधर्म या कर्म-अकर्म का विवेचन एक स्वतंत्र शास्त्र ही है जो न्याय तथा व्याकरण से भी अधिक गहन है। प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में 'नीतिशास्त्र' शब्द का उपयोग प्रायः राजनीति-शास्त्र ही के विषय में किया गया है और कर्त्तव्य–अकर्त्तव्य के विवेचन को 'धर्मशास्त्र' कहते हैं। परन्तु आजकल 'नीति' शब्द ही में कर्त्तव्य अथवा सदाचरण का भी समावेश किया जाता है। इसलिए हमने वर्तमान पद्यति के अनुसार इस ग्रंथ में धर्म-अधर्म या कर्म-अकर्म के विवेचन को ही 'नीतिशास्त्र' कहा है। नीति, कर्म–अकर्म या धर्म–अधर्म के विवेचन का यह शास्त्र बड़ा गहन है। यह भाव प्रगट करने के लिए सूक्ष्मा गतिर्हिं धर्मस्य- अर्थात; धर्म या व्यावहारिक नीति–धर्म का स्वरूप सूक्ष्म है, यह वचन महाभारत में कई जगह पर उपयुक्त हो चुका है। पाँच पांडवों ने मिलकर अकेली द्रौपदी के साथ विवाह कैसे किया? द्रौपदी के वस्त्रहरण के समय भीष्म, द्रोण आदि सत्पुरुष शून्य हृदय होकर चुपचाप क्यों बैठे रहे?

दुष्ट दुर्योधन की ओर से युद्ध करते समय भीष्म और द्रोणाचार्य ने अपने पक्ष का समर्थन करने के लिए जो यह सि़द्धान्त बतलाया कि अर्थस्य पुरुषो दासः दासस्त्वर्थो न कस्यचित्– पुरुष अर्थ (सम्पत्ति) का दास है, अर्थ किसी का दास नहीं हो सकता[1], यह सच है या झूठ? यदि सेवाधर्म को कुत्ते की वृत्ति के समान निन्दनीय माना है, जैसे सेवा श्ववृत्तिराख्याता[2], तो अर्थ के दास हो जाने के बदले भीष्म आदि ने दुर्योधन की सेवा ही का त्याग क्यों नहीं कर दिया? इनके समान और भी कई प्रश्न होते हैं जिनका निर्णय करना बहुत कठिन है, क्योंकि इनके विषय में प्रसंग के अनुसार भिन्न–भिन्न मनुष्यों के भिन्न–भिन्न अनुमान या निर्णय हुआ करते हैं। यही नहीं समझना चाहिए कि धर्म के तत्त्व सिर्फ़ सूक्ष्म ही हैं –सूक्ष्मा गतिर्हिं धर्मस्य[3]; किन्तु महाभारत[4] में यह भी कहा है कि बहुशाखा ह्यनंतिका – अर्थात्; उसकी शाखाएँ भी अनेक हैं और उससे निकलने वाले अनुमान भी भिन्न भिन्न हैं। तुलाधार और जाजलि के संवाद में धर्म का विवेचन करते समय तुलाधार भी यही कहता है कि सूक्ष्मत्वान्न स विज्ञातुं शक्यते बहुनिह्नवः– अर्थात; धर्म बहुत सूक्ष्म और चक्कर में डालने वाला होता है, इसलिए वह समझ में नहीं आता।[5]



टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत, भीष्म पर्व, 43.35
  2. मनुस्मृति. 409
  3. महाभारत. 10.70
  4. महाभारत, वन पर्व, 208.2
  5. महाभारत, शान्ति पर्व, 291.37

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः