गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
पाण्डव वंश:- विचित्रवीर्य की दूसरी पत्नी अम्बालिका के जो पुत्र द्वैपायन व्यास मुनि के नियोग से उत्पन्न हुआ था, वह पाण्डु था। पाण्डु का एक विवाह राजा कुन्तिभोज की धर्मपुत्री अथवा गोद की लड़की “पृथा” के साथ हुआ था जो कुन्ती के नाम से प्रख्यात है। कुन्ती वास्तव में “शूर” नाम के एक यादव नरेश की कन्या थी। कुन्तिभोज और राजा शूर परम मित्र थे। कुन्तिभोज के कोई सन्तान न होने के कारण राजा शूर ने अपनी इस पहली संतान को अपने मित्र कुन्तिभोज को गोद दे दिया था। कुन्ती को गोद[1] लेने के पश्चात् कुन्तिभोज के भी एक पुत्र उत्पन्न हो गया जिसका नाम “पुरुजित” था। यह पुरुजित कुन्ती का भाई तथा युधिष्ठिर भीम, अर्जुन आदि पाण्डवों का मामा था। पाण्डु का दूसरा विवाह मद्रदेश के राजा शल्य की बहिन “माद्री” के साथ हुआ था। यद्यपि पाण्डु की दो स्त्रियाँ थीं, किंतु एक ऋषि के शाप के कारण पाण्डु संतान उत्पन्न नहीं कर सकता था। अतः कुल की रक्षा एवं प्रजा पालन के लिये पाण्डु ने कुन्ती एवं माद्री दोनों को धर्मपूर्वक सयत्नसंतान उत्पन्न करने की अनुमति तथा आज्ञा दे दी। कर्ण जन्म-वृतान्त:- गोद चले जाने के पश्चात् कन्यावस्था में जब कुन्ती अपने धर्म-पिता राजा कुन्तिभोज के पास रह रही थी तो एक दिन दुर्वासा मुनि वहाँ आये। कुन्ती ने मुनि की अत्यन्त श्रद्धा और भक्ति से सेवा की जिससे प्रसन्न होकर दुर्वासा मुनि ने एक ऐसा मन्त्र कुन्ती को सिखाया जिसका जाप करने से ऐसी सिद्धि प्राप्त हो जाये कि जिस देवता का वह स्मरण करे वही देवता उसके पास उपस्थित होकर उसकी मनोकामना पूर्ण करे। इस मंत्र-सिद्धि की परीक्षा करने के लिये कुन्ती ने एक दिन सूर्यदेव का स्मरण किया और सूर्यदेव कुन्ती के समक्ष आकर खड़े हो गये। इस सूर्य आवाह्न के फलस्वरूप कुन्ती के कन्यावस्था में ही कुण्डल और कवचधारी सूर्यमय तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ। किंतु लोकनिंदा और समाज भय से भयान्वित हो कुन्ती ने उस पुत्र को नदी में बहा दिया। राधापति सूतपुत्र ने इस बालक को नदी में बहता देखा तो उसने उसको बाहर निकाल लिया और अपने पास रखकर पुत्र के समान पालन पोषण करने लगा। राधापति ने इस बालक का नाम “वसुसेन” रक्खा। यह वसुसेन महाप्रतापी, पराक्रमी, तेजस्वी होने के अतिरिक्त महादानी भी था नित्य सूर्य की आराधना करके प्रचुर स्वर्ण का दान दिया करता था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.इससे यह सिद्ध होता है कि गोद लेने की प्रथा उस समय भी थी और कन्या को भी गोद लिया जाता था।
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