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आठवां अध्याय
प्रयाण-साधना: सातत्ययोग
39. रात-दिन युद्ध का प्रसंग
15. सार यह है कि बाहर से सतत स्वधर्माचरण और भीतर से हरिस्मरणरूपी चित्त-शुद्धि की क्रिया, इस तरह जब ये अंतर्बाह्य-कर्म-विकर्म के प्रवाह काम करेंगे, तब मरण आनंददायी मालूम होगा। इसलिए भगवान कहते हैं- तस्मात् सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च- ‘मेरा अखंड स्मरण करो और लड़ते रहो।’ सदा त्यांत चि रंगला- 'उसी में सदा रंगा रह।' सदा ईश्वर में लीन रहो। ईश्वरीय प्रेम से जब अंतर्बाह्य रंग जाओगे, जब वह रंग सारे जीवन में चढ़ जायेगा, तब पवित्र बातों में सदैव आनंद आने लगेगा। तब बुरी वृत्तियां सामने आकर खड़ी ही नहीं रहेंगी। सुंदर, बढ़िया मनोरथों के अंकुर मन में उगने लगेंगे। अच्छे कर्म सहज ही होने लगेंगे।
16. यह तो ठीक है कि ईश्वर-स्मरण से अच्छे कर्म सहज भाव से होने लगेंगे; परंतु भगवान की आज्ञा है कि ‘लड़ते रहो’। तुकाराम महाराज कहते हैं- रात्री दिवस आम्हां युद्धाचा प्रसंग। अंतर्र्बाह्यजग आणि मन - 'हमारे लिए रात-दिन युद्ध का ही प्रसंग है। एक ओर है मन और दूसरी ओर हैं अंतर्बाह्य जगत्!’ भीतर और बाहर अनंत सृष्टि व्याप्त है। इस सृष्टि से मन का सतत झगड़ा जारी रहता है। इस झगड़े में हर बार जय ही होगी, ऐसा नहीं। जो अंत को साध लेगा, वही सच्चा विजयी। अंत में जो फैसला हो, वही सही। कभी सफलता मिलेगी, तो कभी असफलता। असफलता मिली, तो निराश होने का कोई कारण नहीं। मान लो कि पत्थर पर उन्नीस बार चोट लगने वे वह नहीं फूटा और बीसवीं बार की चोट से फूट गया, तो फिर क्या वे उन्नीस चोटें व्यर्थ ही गयीं? उस बीसवीं चोट की सफलता की तैयारी वे उन्नीस चोटें कर रही थीं।
17. निराश होने का अर्थ है, नास्तिक होना। विश्वास रखो कि परमेश्वर हमारा रक्षक है। बच्चे की हिम्मत बढ़ाने के लिए मां उसे इधर-उधर जाने देती है; परंतु वह उसे गिरने नहीं देती। जहाँ वह गिरने लगा कि झट् आकर धीरे से उठा लेती है। ईश्वर भी तुम्हारी ओर देख रहा है। तुम्हारी जीवनरूपी पतंग की डोरी उसके हाथ में है। कभी वह डोर खींच लेता है, कभी ढीली छोड़ देता है; परंतु यह विश्वास रखो कि डोर है उसके हाथ में। गंगा के घाट पर तैरना सिखाते हैं। घाट पर के वृक्ष में सांकल या डोरी बंधी रहती है। उसे कमर से बांधकर आदमी को पानी में फेंक देते हैं। सिखाने वाले उस्ताद भी पानी में रहते ही हैं। नौसिखिया पहले दो-चार बार डुबकी खाता है, परंतु अंत में वह तैरने की कला सीख जाता है। इसी तरह परमेश्वर हमें जीवन की कला सिखा रहा है।
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