पहला अध्याय
प्रास्ताविक आख्यायिका: अर्जुन का विषाद
3. गीता का प्रयोजन: स्वधर्म-विरोधी मोह का निरसन
11. अर्जुन अहिंसा की ही नहीं, संन्यास की भी भाषा बोलने लगा। वह कहता है- "इस रक्त-लांछित क्षात्र-धर्म से संन्यास ही अच्छा है।" परन्तु क्या वह अर्जुन का स्वधर्म था? उसकी वह वृत्ति थी क्या? अर्जुन संन्यासी का वेश तो बडे मजे से बना सकता था पर वैसी वृत्ति कैसे ला सकता था। संन्यास के नाम पर यदि वह जंगल में जाकर रहता, तो वहां, हिरन मारना शुरू कर देता। अतः भगवान ने साफ ही कहा- ʺअर्जुन, तू जो यह कह रहा है कि मैं लडूंगा नहीं, वह तेरा भ्रम है। आज तक जो तेरा स्वभाव बना हुआ है, वह तुझे लड़ाये बिना रहेगा नहीं।" अर्जुन को स्वधर्म विगुण मालूम होने लगा। परन्तु स्वधर्म कितना ही विगुण हो, तो भी उसी में रहकर मुष्य को अपना विकास कर लेना चाहिए, क्योंकि उसमें रहने से ही विकास हो सकता है। इसमें अभिमान को काई प्रश्न नहीं है। यह तो विकास का सूत्र है। स्वधर्म ऐसी वस्तु नहीं है कि जिसे बड़ा समझकर ग्रहण करें और छोटा समझकर छोड़ दें। वस्तुतः वह न बड़ा होता है, न छोटा। वह हमारे नाप का होता है। श्रेयान् स्वधर्मों विगुणः इस गीता- वचन में ‘धर्म’ शब्द का अर्थ हिन्दू-धर्म, इस्लाम-धर्म, ईसाई-धर्म आदि जैसा नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति का अपना भिन्न भिन्न धर्म है। मेरे सामने यहा। जो दो सौ व्यक्ति मौजूद है, उनके दो सौ धर्म हैं। मेरा भी धर्म जो दस वर्ष पहले था, वह आज नहीं है। आज का धर्म दस वर्ष बाद टिकेगा नहीं। चिंतन और अनुभव से जैसे-जैसे वृत्तियां बदलती जाती है, वैसे-वैसे पहले का धर्म छूटता जाता है और नवीन धर्म प्राप्त होता जाता है। हठ पकड़कर कुछ भी नहीं करना है। 12. दूसरे का धर्म भले ही श्रेष्ठ मालूम हो, उसे ग्रहण करने में मेरा कल्याण नहीं है। सूर्य का प्रकाश मुझे प्रिय है। उस प्रकाश से मैं बढ़ता हूँ। सूर्य मेरे लिए वंदनीय भी है। परन्तु इसलिए यदि मैं पृथ्वी पर रहना छोड़कर उसके पास जाना चाहूंगा, तो जलकर खाक हो जाऊंगा। इसके विपरीत भले ही पृथ्वी पर रहना विगुण हो, सूर्य के सामने पृथ्वी बिलकुल तुच्छ हो, स्वयं प्रकाशी न हो, तो भी जब तक सूर्य का तेज सहन करने का सामर्थ्य मुझमें नहीं है, तब तक सूर्य से दूर पृथ्वी पर रहकर ही मुझे अपना विकास कर लेना होगा। मछली से यदि कोई कहे कि ‘पानी से दूध कीमती है, तुम दूध में रहो’ तो क्या मछली उसे मंजूर करेगी? मछली तो पानी में ही जी सकती है, दूध में मर जायेगी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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