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पांचवा अध्याय
दुहरी अकर्मावस्थाः योग और संन्यास
20. अकर्म का दूसरा पहलू: संन्यास
16. किसी मनुष्य को गुस्सा आ गया। यदि हमारी भूल से वह गुस्सा हुआ है, तो हम उसके पास जाते हैं। वह चुप रहता है, बोलना छोड़ देता है। उसके न बोलने का, उस कर्मत्याग का कितना प्रचंड परिणाम होता है। दूसरा फटाफट बोल देगा। दोनों हैं तो गुस्से में ही, परन्तु एक चुप है, दूसरा बड़बड़ाता है। दोनों हैं गुस्से के ही प्रकार। न बोलना, यह भी क्रोध का ही एक रूप है। उससे भी कार्य होता है। मां या बाप ने बच्चे से बोलना बंद कर दिया तो उसका परिणाम कितना प्रचंड होता है। उस बोलने के कर्म को छोड़ देने से, उस कर्म को न करने से ही इतना प्रचंड कर्म होता है कि प्रत्यक्ष कर्म करने पर भी उसका इतना परिणाम नहीं हो सकता था। उस न बोलने का जो प्रभाव हुआ, वह बोलने से नहीं हो सकता। ज्ञानी पुरुष की ऐसी ही स्थिति होती है। उसका अकर्म ही, उसका खामोश बैठना ही, प्रचंड कर्म करता है, प्रचंड सामर्थ्य उत्पन्न करता है। अकर्मी रहकर वह इतने कर्म करता है कि वे सब क्रिया के द्वारा प्रकट ही नहीं हो सकते। इस तरह यह संन्यास का दूसरा प्रकार है।
ऐसे संन्यासी की सारी प्रवृत्तियां, उसके सारे उद्योग एक आसन पर आकर बैठ जाते हैं।
द्योगाची धांव बैसली आसनीं, पडिलें नारायणीं मोटळें हें।
सकळ निश्चिंती झाली हा भरंवसा, नाहीं गर्भवासा येणें ऐसा॥
आपुलिये सत्ते नहीं आम्हां जिणें, अभिमान तेणें नेला देवें।
तुका म्हणे चळे एकाचिये सत्ते, आपुलें मी रितेपणें असें॥
{उद्योग की भाग-दौड़ शान्त होकर आसनस्थ हो गयी है। नारायण के चरणों में यह गठरी पड़ी है। मैं पूर्णतः निश्चिंत हो गया हूँ। यह विश्वास हो गया है कि अब मेरा गर्भवास छूट गया है। मैं अब अपनी अहंता से नहीं जीता। भगवान ने मेरा यह अभिमान छीन लिया है। तुकाराम कहता है कि अब सब उसकी ही सत्ता से चल रहा है। मैं अब शून्य-रिक्त बन गया हूँ।}
तुकाराम कहते हैं- "मैं अब ख़ाली हो गया हूँ, गठरी होकर पड़ा हूँ। सब उद्योग समाप्त हो गये।" तुकाराम ख़ाली हो गये, परन्तु उस ख़ाली बोरे में प्रचंड प्रेरक शक्ति है। सूर्य खुद आवाज नहीं लगाता, परन्तु उगते ही पंछी उड़ने लगते हैं, मेमने नाचने लगते हैं, गायें वन में चरने जाती हैं। व्यापारी दुकान खोलते हैं। किसान खेत पर जाते हैं, संसार के नाना व्यवहार शुरू हो जाते हैं। सूर्य केवल है, उतने से ही अनन्त कर्म शुरू हो जाते हैं। इस अकर्मावस्था में अनन्त कर्मों की प्रेरणा, सामर्थ्य ठसाठस भरा रहता है। ऐसा यह संन्यास दूसरा अद्भुत प्रकार है।
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