गीता-प्रवचन -विनोबा पृ. 261

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साम्यसूत्र-वृत्तिः
अध्याय 18
(101) अथातस्त्यागमीमांसा - 2

1. अंतिमं प्रवचनम्
2. अर्जुनस्यांतिमः प्रश्नः

(102) निकषः सार्वभौमः - 4

3. फलत्यागो निकषः
4. काम्य-निषिद्धानि वर्जनीयानि
5. कर्ममात्रं सदोषम्
6. कर्मसंकोचो निरर्थकः

(103) क्रियोपरमे वीर्यवत्तरम् - 6

7. सेंद्राय तक्षकायेति न कुर्यात्
8. गोरक्ष-दृष्टांतेन बोद्धव्यम्
9. देहदहनाय प्रवृत्तो मूर्खः
10. अमंगलमिति न वक्तव्यम्
11. क्रियाकर्मणोर् भेदः
12. दांभिक-पोपवत् साधकस्य

(104) अनेन स्वधर्मों विवृतः - 4

13. ओघप्राप्तं सदोषमपि न त्यजेत्
14. अप्राप्तं गुणवदपि न ग्राह्यम्
15. प्रतिव्यक्ति भिन्नं स्वत्वम्
16. स्वधर्मः स्थिरः परिवर्तनीयश्च

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता प्रवचन -विनोबा
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
1. प्रास्ताविक आख्यायिका : अर्जुन का विषाद 1
2. सब उपदेश थोड़े में : आत्मज्ञान और समत्वबुद्धि 9
3. कर्मयोग 20
4. कर्मयोग सहकारी साधना : विकर्म 26
5. दुहरी अकर्मावस्था : योग और सन्यास 32
6. चित्तवृत्ति-निरोध 49
7. प्रपत्ति अथवा ईश्वर-शरणता 62
8. प्रयाण-साधना : सातत्ययोग 73
9. मानव-सेवारूप राजविद्या समर्पणयोग 84
10. विभूति-चिंतन 101
11. विश्वरूप–दर्शन 117
12. सगुण–निर्गुण–भक्ति 126
13. आत्मानात्म-विवेक 141
14. गुणोत्कर्ष और गुण-निस्तार 159
15. पूर्णयोग : सर्वत्र पुरूषोत्तम-दर्शन 176
16. परिशिष्ट 1- दैवी और आसुरी वृत्तियों का झगड़ा 188
17. परिशिष्ट 2- साधक का कार्यक्रम 201
18. उपसंहार- फलत्याग की पूर्णता-ईश्वर-प्रसाद 216
19. अंतिम पृष्ठ 263

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