गीता-प्रवचन -विनोबा पृ. 258

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साम्यसूत्र-वृत्तिः
अध्याय 17
(94) संयतेन स्वैरम् - 3

1. कार्यक्रमयोगः
2. तेनैव निश्चिंतता
3. संस्थात्रयाधारितं जन्म

(95) तदर्थ त्रिविधिः - 6

4. क्षतिपूरणो यज्ञः
5. ऋणमोचनं दानम्
6. दोषशोधनं तपः
7. एतैः संस्थात्रये साम्यं स्थापयेत्
8. आहारसेवनं तदर्थीयम्
9. मूलभूता श्रद्धा

(96) सात्त्विकं संपादयेत् - 5

10. सात्त्विकमेव समर्पणीयम्
11. सेवा-साधना-सामरस्यम्
12. कामनामुक्तं साफल्ययुक्तं च
13. सौंदर्य प्रतिबिंबम्
14. मंत्रेण पुष्टिः

(97) आहारशुद्धौ - 4

15. मिताहारस्य महत्त्वम्
16. निरामिषं पूर्वज-पुण्यम्
17. मत्स्याशनत्यागः प्रयोगविषयः
18. पूर्वज-पुण्यं न हापयेत्

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता प्रवचन -विनोबा
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
1. प्रास्ताविक आख्यायिका : अर्जुन का विषाद 1
2. सब उपदेश थोड़े में : आत्मज्ञान और समत्वबुद्धि 9
3. कर्मयोग 20
4. कर्मयोग सहकारी साधना : विकर्म 26
5. दुहरी अकर्मावस्था : योग और सन्यास 32
6. चित्तवृत्ति-निरोध 49
7. प्रपत्ति अथवा ईश्वर-शरणता 62
8. प्रयाण-साधना : सातत्ययोग 73
9. मानव-सेवारूप राजविद्या समर्पणयोग 84
10. विभूति-चिंतन 101
11. विश्वरूप–दर्शन 117
12. सगुण–निर्गुण–भक्ति 126
13. आत्मानात्म-विवेक 141
14. गुणोत्कर्ष और गुण-निस्तार 159
15. पूर्णयोग : सर्वत्र पुरूषोत्तम-दर्शन 176
16. परिशिष्ट 1- दैवी और आसुरी वृत्तियों का झगड़ा 188
17. परिशिष्ट 2- साधक का कार्यक्रम 201
18. उपसंहार- फलत्याग की पूर्णता-ईश्वर-प्रसाद 216
19. अंतिम पृष्ठ 263

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