गीता-प्रवचन -विनोबा पृ. 252

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साम्यसूत्र-वृत्तिः
अध्याय 14
(75) प्रकृतिः शोध्या - 3

1. श्रृंखला भेदनीया
2. विवेक वैराग्याभ्याम्
3. त्रिधातुका शोधनीया

(76) श्रम-संजात-वारिणा - 5

4. शरीरस्थो महारिपुः
5. पादं प्रविष्टः कलिः
6. समाजश् छिन्नभिन्नः
7. रुंडमुंड-वर्गभेदेन
8. श्रमनिष्ठा रामबाणः

(77) यन्ति प्रमादमतंद्राः - 4

9. गाढनिद्रा सुदुर्लभा
10. चक्री न सुखं शेते
11. विस्मृतिर् व्याधिः
12. प्रमादो मृत्युः

(78) वेगस्य शमनं स्वधर्मेण - 4

13. तमःप्रतीपं रजः
14. रजोलक्षणं वेगः
15. सततं भ्रामयति
16. रजोमारणं स्वधर्मेण

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता प्रवचन -विनोबा
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
1. प्रास्ताविक आख्यायिका : अर्जुन का विषाद 1
2. सब उपदेश थोड़े में : आत्मज्ञान और समत्वबुद्धि 9
3. कर्मयोग 20
4. कर्मयोग सहकारी साधना : विकर्म 26
5. दुहरी अकर्मावस्था : योग और सन्यास 32
6. चित्तवृत्ति-निरोध 49
7. प्रपत्ति अथवा ईश्वर-शरणता 62
8. प्रयाण-साधना : सातत्ययोग 73
9. मानव-सेवारूप राजविद्या समर्पणयोग 84
10. विभूति-चिंतन 101
11. विश्वरूप–दर्शन 117
12. सगुण–निर्गुण–भक्ति 126
13. आत्मानात्म-विवेक 141
14. गुणोत्कर्ष और गुण-निस्तार 159
15. पूर्णयोग : सर्वत्र पुरूषोत्तम-दर्शन 176
16. परिशिष्ट 1- दैवी और आसुरी वृत्तियों का झगड़ा 188
17. परिशिष्ट 2- साधक का कार्यक्रम 201
18. उपसंहार- फलत्याग की पूर्णता-ईश्वर-प्रसाद 216
19. अंतिम पृष्ठ 263

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