गीता-प्रवचन -विनोबा पृ. 244

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साम्यसूत्र-वृत्तिः
अध्याय 9
(45) क्रियाविशेषानपेक्षः - 3

17. यशोदावत् बालसंगोपनम्
18. कृषकस्य वृषभसेवा
19. पाकयज्ञो गृहलक्ष्म्याः

(46) व्यापकत्वात् - 9

20. पुरुषसूक्तेन स्नानम्
21. वस्त्रेव भद्रा सुकृता
22. पांथको नारायणः
23. वाल्मीकि-परिवर्तनम्
24. वस्तुतो न कश्चित् दुष्टो नाम
25. मातृकथिता कृष्णार्पणकथा
26. विठ्ठल-मिश्रितं स्वादु
27. मधुरेणोत्थापयेत्
28. गुरुशिष्यावन्योन्यदेवते

(47) अकुतोभयम् - 2

29. पापं बिभेति हरिनाम्नः
30. बोलोऽपि श्मशाने निर्भयः

(48) स्वल्पेनापि - 2

31. भावनाया मूल्यम्
32. ईश्वरार्पितमुप्तमिव

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता प्रवचन -विनोबा
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
1. प्रास्ताविक आख्यायिका : अर्जुन का विषाद 1
2. सब उपदेश थोड़े में : आत्मज्ञान और समत्वबुद्धि 9
3. कर्मयोग 20
4. कर्मयोग सहकारी साधना : विकर्म 26
5. दुहरी अकर्मावस्था : योग और सन्यास 32
6. चित्तवृत्ति-निरोध 49
7. प्रपत्ति अथवा ईश्वर-शरणता 62
8. प्रयाण-साधना : सातत्ययोग 73
9. मानव-सेवारूप राजविद्या समर्पणयोग 84
10. विभूति-चिंतन 101
11. विश्वरूप–दर्शन 117
12. सगुण–निर्गुण–भक्ति 126
13. आत्मानात्म-विवेक 141
14. गुणोत्कर्ष और गुण-निस्तार 159
15. पूर्णयोग : सर्वत्र पुरूषोत्तम-दर्शन 176
16. परिशिष्ट 1- दैवी और आसुरी वृत्तियों का झगड़ा 188
17. परिशिष्ट 2- साधक का कार्यक्रम 201
18. उपसंहार- फलत्याग की पूर्णता-ईश्वर-प्रसाद 216
19. अंतिम पृष्ठ 263

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