साम्यसूत्र-वृत्तिः अध्याय 8 (38) तद्भावभावितः - 3 12. सदा सावधानेन भाव्यम् 13. दैनिककर्तव्य-पूर्तिः 14. सत्-संस्कार-धारा (39) संनद्धश्च - 3 15. अखंडभगवत्स्मृतिः 16. निरंतरं युद्ध-प्रसंगः 17. निराशा नैव (40) आप्रायणात् - 3 18. प्रयाणसाधनारूपकम् 19. रूपक-विवेचनम् 20. तच्चिंतनं पुनः पुनः टीका टिप्पणी और संदर्भ संबंधित लेख गीता प्रवचन -विनोबा अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या 1. प्रास्ताविक आख्यायिका : अर्जुन का विषाद 1 2. सब उपदेश थोड़े में : आत्मज्ञान और समत्वबुद्धि 9 3. कर्मयोग 20 4. कर्मयोग सहकारी साधना : विकर्म 26 5. दुहरी अकर्मावस्था : योग और सन्यास 32 6. चित्तवृत्ति-निरोध 49 7. प्रपत्ति अथवा ईश्वर-शरणता 62 8. प्रयाण-साधना : सातत्ययोग 73 9. मानव-सेवारूप राजविद्या समर्पणयोग 84 10. विभूति-चिंतन 101 11. विश्वरूप–दर्शन 117 12. सगुण–निर्गुण–भक्ति 126 13. आत्मानात्म-विवेक 141 14. गुणोत्कर्ष और गुण-निस्तार 159 15. पूर्णयोग : सर्वत्र पुरूषोत्तम-दर्शन 176 16. परिशिष्ट 1- दैवी और आसुरी वृत्तियों का झगड़ा 188 17. परिशिष्ट 2- साधक का कार्यक्रम 201 18. उपसंहार- फलत्याग की पूर्णता-ईश्वर-प्रसाद 216 19. अंतिम पृष्ठ 263 वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ ऋ ॠ ऑ श्र अः