गीता-प्रवचन -विनोबा पृ. 240

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साम्यसूत्र-वृत्तिः
अध्याय 7
(32) मायिनो-ग्रहणेन - 4

1. नूतनागारम्
2. द्विविधा प्रकृतिः
3. परमात्मा ग्रहीतव्यः
4. प्रपत्ति-योगेन

(33) भक्तिरसं लब्ध्वा - 4

5. भक्तिर् वास्तविको रसः
6. अन्ये रसा आभासिकाः
7. आनंदाभासं निर्मिमीते निरानंदः
8. रामरसं को जानाति?

(34) काम्यं क्षम्यं हरिस्पर्शात् - 4

9. अश्रुपूर्णो नामदेवः
10. व्रतपरायणा महिलाः
11. युधिष्ठिरस्य कुक्कुरः
12. भाविको यात्रिकः

(35) निष्कामाश्चतुर्विधाः - 4

13. आर्तः साधकः
14. जिज्ञासुः शोधकः
15. हितार्थी सेवकः
16. ज्ञानी परिपूर्णः

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता प्रवचन -विनोबा
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
1. प्रास्ताविक आख्यायिका : अर्जुन का विषाद 1
2. सब उपदेश थोड़े में : आत्मज्ञान और समत्वबुद्धि 9
3. कर्मयोग 20
4. कर्मयोग सहकारी साधना : विकर्म 26
5. दुहरी अकर्मावस्था : योग और सन्यास 32
6. चित्तवृत्ति-निरोध 49
7. प्रपत्ति अथवा ईश्वर-शरणता 62
8. प्रयाण-साधना : सातत्ययोग 73
9. मानव-सेवारूप राजविद्या समर्पणयोग 84
10. विभूति-चिंतन 101
11. विश्वरूप–दर्शन 117
12. सगुण–निर्गुण–भक्ति 126
13. आत्मानात्म-विवेक 141
14. गुणोत्कर्ष और गुण-निस्तार 159
15. पूर्णयोग : सर्वत्र पुरूषोत्तम-दर्शन 176
16. परिशिष्ट 1- दैवी और आसुरी वृत्तियों का झगड़ा 188
17. परिशिष्ट 2- साधक का कार्यक्रम 201
18. उपसंहार- फलत्याग की पूर्णता-ईश्वर-प्रसाद 216
19. अंतिम पृष्ठ 263

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