गीता-प्रवचन -विनोबा पृ. 235

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साम्यसूत्र-वृत्तिः
अध्याय 4
(14) विकर्मणा संधानम् - 3

1. निष्कामता-सिद्धये चित्तं शोधयेत्
2. एतदर्थ विकर्म-योजना
3. निष्कामकर्मणि विशेषणं वरीयः

(15) ततः स्फोटः - 6

4. मंत्रेण तंत्रे शक्तिः
5. भावेन सेवा सार्द्रा
6. विकर्मणा कर्मणि चैतन्यम्
7. रामेक्षणमिव
8. निरूपद्रवं भस्म
9. न भारो न श्रमः

(16) सच्छरणस्य - 3

10. विकर्मकला सत्संगेन
11. ज्ञानं निर्ग्रथम्
12. अति-श्रुतस्य बुद्धिर्भ्रांतः

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता प्रवचन -विनोबा
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
1. प्रास्ताविक आख्यायिका : अर्जुन का विषाद 1
2. सब उपदेश थोड़े में : आत्मज्ञान और समत्वबुद्धि 9
3. कर्मयोग 20
4. कर्मयोग सहकारी साधना : विकर्म 26
5. दुहरी अकर्मावस्था : योग और सन्यास 32
6. चित्तवृत्ति-निरोध 49
7. प्रपत्ति अथवा ईश्वर-शरणता 62
8. प्रयाण-साधना : सातत्ययोग 73
9. मानव-सेवारूप राजविद्या समर्पणयोग 84
10. विभूति-चिंतन 101
11. विश्वरूप–दर्शन 117
12. सगुण–निर्गुण–भक्ति 126
13. आत्मानात्म-विवेक 141
14. गुणोत्कर्ष और गुण-निस्तार 159
15. पूर्णयोग : सर्वत्र पुरूषोत्तम-दर्शन 176
16. परिशिष्ट 1- दैवी और आसुरी वृत्तियों का झगड़ा 188
17. परिशिष्ट 2- साधक का कार्यक्रम 201
18. उपसंहार- फलत्याग की पूर्णता-ईश्वर-प्रसाद 216
19. अंतिम पृष्ठ 263

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