पहला अध्याय
प्रास्ताविक आख्यायिका: अर्जुन का विषाद
1.मध्ये-महाभारतम्
4.व्यासदेव ने इतना बड़ा महाभारत लिखा, परंतु उन्हें अपनी ओर से कुछ कहना था या नहीं? क्या किसी जगह उन्होंने अपना कोई ख़ास संदेश भी दिया है? किस स्थान पर व्यासदेव की समाधि लगी है? स्थान-स्थान पर अनेक तत्त्वज्ञान और उपदेशों के जंगल-के-जंगल महाभारत में आये हैं, परंतु इन सारे तत्त्वज्ञानों का, उपदेशों का और समूचे ग्रंथ का सारभूत रहस्य भी उन्होंने कहीं लिखा है? हां, लिखा है। समग्र महाभारत का नवनीत व्यास जी ने भगवद् गीता में रख दिया है। गीता व्यासदेव की प्रमुख सिखावन और उनके मनन का सम्पूर्ण संग्रह है। इसी के आधार पर 'मैं मुनियों में व्यास हूं' यह विभूति सार्थक सिद्ध होने वाली है। गीता को प्रचीन काल से 'उपनिषद' की पदवी मिली हुई है। गीता रूपी दूध भगवान ने अर्जुन के निमित्त से संसार को दिया है। जीवन के विकास के लिये आवश्यक प्राय: प्रत्येक विचार गीता में आ गया है। इसीलिये अनुभवी पुरुषों यथार्थ ही कहा है कि गीता धर्मज्ञान का एक कोष है। गीता हिंदू-धर्म का एक छोटा-सा ही, परंतु मुख्य ग्रंथ है। 5.यह तो सभी जानते हैं कि गीता श्रीकृष्ण ने कही है। इस महान सिखावन को सुनने वाला भक्त अर्जुन इस सिखावन से इतना समरस हो गया कि उसे भी 'कृष्ण' संज्ञा मिल गयी है। भगवान और भक्त का यह हृद्गत प्रकट करते हुए व्यासदेव इतने एकरस हो गये कि लोग उन्हें भी 'कृष्ण' नाम से जानने लगे। कहने वाला कृष्ण, सुनने वाला कृष्ण, रचने वाला कृष्ण -इस तरह इन तीनों में मानो अद्वैत उत्पन्न हो गया, मानो तीनों की समाधि लग गयी। गीता के अध्येता में ऐसी ही एकाग्रता चाहिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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