गीता-प्रवचन -विनोबा पृ. 2

Prev.png
पहला अध्याय
प्रास्ताविक आख्यायिका: अर्जुन का विषाद
1.मध्ये-महाभारतम्

4.व्यासदेव ने इतना बड़ा महाभारत लिखा, परंतु उन्हें अपनी ओर से कुछ कहना था या नहीं? क्या किसी जगह उन्होंने अपना कोई ख़ास संदेश भी दिया है? किस स्थान पर व्यासदेव की समाधि लगी है? स्थान-स्थान पर अनेक तत्त्वज्ञान और उपदेशों के जंगल-के-जंगल महाभारत में आये हैं, परंतु इन सारे तत्त्वज्ञानों का, उपदेशों का और समूचे ग्रंथ का सारभूत रहस्य भी उन्होंने कहीं लिखा है? हां, लिखा है। समग्र महाभारत का नवनीत व्यास जी ने भगवद् गीता में रख दिया है। गीता व्यासदेव की प्रमुख सिखावन और उनके मनन का सम्पूर्ण संग्रह है। इसी के आधार पर 'मैं मुनियों में व्यास हूं' यह विभूति सार्थक सिद्ध होने वाली है। गीता को प्रचीन काल से 'उपनिषद' की पदवी मिली हुई है। गीता रूपी दूध भगवान ने अर्जुन के निमित्त से संसार को दिया है। जीवन के विकास के लिये आवश्यक प्राय: प्रत्येक विचार गीता में आ गया है। इसीलिये अनुभवी पुरुषों यथार्थ ही कहा है कि गीता धर्मज्ञान का एक कोष है। गीता हिंदू-धर्म का एक छोटा-सा ही, परंतु मुख्य ग्रंथ है।

5.यह तो सभी जानते हैं कि गीता श्रीकृष्ण ने कही है। इस महान सिखावन को सुनने वाला भक्त अर्जुन इस सिखावन से इतना समरस हो गया कि उसे भी 'कृष्ण' संज्ञा मिल गयी है। भगवान और भक्त का यह हृद्गत प्रकट करते हुए व्यासदेव इतने एकरस हो गये कि लोग उन्हें भी 'कृष्ण' नाम से जानने लगे। कहने वाला कृष्ण, सुनने वाला कृष्ण, रचने वाला कृष्ण -इस तरह इन तीनों में मानो अद्वैत उत्पन्न हो गया, मानो तीनों की समाधि लग गयी। गीता के अध्येता में ऐसी ही एकाग्रता चाहिये।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता प्रवचन -विनोबा
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
1. प्रास्ताविक आख्यायिका : अर्जुन का विषाद 1
2. सब उपदेश थोड़े में : आत्मज्ञान और समत्वबुद्धि 9
3. कर्मयोग 20
4. कर्मयोग सहकारी साधना : विकर्म 26
5. दुहरी अकर्मावस्था : योग और सन्यास 32
6. चित्तवृत्ति-निरोध 49
7. प्रपत्ति अथवा ईश्वर-शरणता 62
8. प्रयाण-साधना : सातत्ययोग 73
9. मानव-सेवारूप राजविद्या समर्पणयोग 84
10. विभूति-चिंतन 101
11. विश्वरूप–दर्शन 117
12. सगुण–निर्गुण–भक्ति 126
13. आत्मानात्म-विवेक 141
14. गुणोत्कर्ष और गुण-निस्तार 159
15. पूर्णयोग : सर्वत्र पुरूषोत्तम-दर्शन 176
16. परिशिष्ट 1- दैवी और आसुरी वृत्तियों का झगड़ा 188
17. परिशिष्ट 2- साधक का कार्यक्रम 201
18. उपसंहार- फलत्याग की पूर्णता-ईश्वर-प्रसाद 216
19. अंतिम पृष्ठ 263

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः