गीता-प्रवचन -विनोबा पृ. 148

Prev.png
तेरहवां अध्याय
आत्मानात्म-विवेक
69. देहासक्ति से जीवन अवरुद्ध

13. सारांश, यह देह साध्य नहीं, साधन है। यदि हमारा यह भाव दृढ़ हो जाये, तो फिर शरीर का जो वृथा आडंबर रचा जाता है, वह न रहेगा। जीवन हमें निराले ही ढंग का दीखने लगेगा। फिर इस देह को सजाने में हमें गौरव का अनुभव नहीं होगा। वस्तुतः इस देह के लिए एक सादा कपड़ा काफी है। पर नहीं, हम चाहते हैं वह नरम हो, मुलायम हो, उसका बढ़िया रंग हो, सुंदर छपाई हो, अच्छे किनारे-बेल-बूटे हों, कलाबत्तू हो आदि। उसके लिए हम अनेक लोगों से तरह-तरह की मेहनत कराते हैं।'

यह सब क्यों? उस भगवान को क्या अक्ल नहीं थी? यदि इस देह के लिए सुंदर बेल-बूटों और नक्काशी की जरूरत होती, तो जैसे बाघ के शरीर पर उसने धारियां डाल दी हैं, वैसे क्या तुम्हारे हमारे शरीर पर नहीं डाल देता? उसके लिए क्या यह असंभव था? वह मोर की तरह सुंदर पिच्छ हमें भी लगा सकता था; परंतु ईश्वर ने मनुष्य को एक ही रंग दिया है। उसमें जरा-सा दाग पड़ जाता है, तो उसका सौंदर्य नष्ट हो जाता है। मनुष्य जैसा है वैसा ही सुंदर है।

परमेश्वर का यह उद्देश्य ही नहीं है कि मनुष्य देह को सजाया जाये। सृष्टि में क्या सामान्य सौंदर्य है? मनुष्य का काम इतना ही है कि वह अपनी आंखों से इसे निहारता रहे; परंतु वह रास्ता भूल गया है। कहते हैं कि जर्मनी ने हमारे रंग को मार दिया। अरे भाई, तुम्हारे मन का रंग तो पहले ही मर चुका, बाद में तुम्हें इस बनावटी रंग का शोक लगा! उसी के लिए तुम परावलंबी हो गये। व्यर्थ ही तुम इस शरीर-श्रृंगार के चक्कर में पड़ गये। मन को सजाना, बुद्धि का विकास करना, हृदय को सुंदर बनाना तो एक तरफ ही रह गया।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता प्रवचन -विनोबा
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
1. प्रास्ताविक आख्यायिका : अर्जुन का विषाद 1
2. सब उपदेश थोड़े में : आत्मज्ञान और समत्वबुद्धि 9
3. कर्मयोग 20
4. कर्मयोग सहकारी साधना : विकर्म 26
5. दुहरी अकर्मावस्था : योग और सन्यास 32
6. चित्तवृत्ति-निरोध 49
7. प्रपत्ति अथवा ईश्वर-शरणता 62
8. प्रयाण-साधना : सातत्ययोग 73
9. मानव-सेवारूप राजविद्या समर्पणयोग 84
10. विभूति-चिंतन 101
11. विश्वरूप–दर्शन 117
12. सगुण–निर्गुण–भक्ति 126
13. आत्मानात्म-विवेक 141
14. गुणोत्कर्ष और गुण-निस्तार 159
15. पूर्णयोग : सर्वत्र पुरूषोत्तम-दर्शन 176
16. परिशिष्ट 1- दैवी और आसुरी वृत्तियों का झगड़ा 188
17. परिशिष्ट 2- साधक का कार्यक्रम 201
18. उपसंहार- फलत्याग की पूर्णता-ईश्वर-प्रसाद 216
19. अंतिम पृष्ठ 263

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः