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बारहवां अध्याय
सगुण-निर्गुण-भक्ति
63. दोनों परस्पर पूरक: राम-चरित्र के दृष्टांत
20. मछली जिस तरह पानी से जुदा नहीं रह सकती‚ वही हाल लक्ष्मण का था। राम से दूर रहने की शक्ति उसमें नहीं थी। उसके रोम-रोम में सहानुभूति भरी थी। राम सो जायें‚ तब भी स्वयं जागता रहे‚ उनकी सेवा करे। इसी में उसे आनंद मालूम होता था। हमारी आंख पर कोई कंकड़ मारे‚ तो जैसे हाथ फौरन उठकर आंख पर आ जाता है और कंकड़ की मार झेल लेता है, उसी तरह लक्ष्मण राम का हाथ बन गया था। राम पर यदि प्रहार हो‚ तो पहले लक्ष्मण उसे झेलता। तुलसीदास जी ने लक्ष्मण के लिए एक बढ़िया दृष्टांत दिया है। झंडा ऊंचा लहराता रहता है। मान-वंदना सब झंडे की ही करते हैं। उसके रंग‚ आकार आदि के गीत गाये जाते हैं। परंतु उस सीधे खड़े डंडे को कौन पूछता है? राम के यश की जो पताका फहर रही है‚ उसको डंडे की तरह आधार लक्ष्मण ही था। वह सीधा तना खड़ा रहा। झंडे का डंडा कभी झुक नहीं सकता‚ उसी तरह राम के यश को फहराने वाला लक्ष्मण रूपी डंडा कभी झुका नहीं। यश किसका? तो रामकाǃ संसार को पताका दीखती है‚ डंडे की याद नहीं रहती। मंदिर का कलश दीखता है‚ नींव नहीं। राम का यश संसार में फैल रहा है, परंतु लक्ष्मण का कहीं पता नहीं। चौदह साल तक यह डंडा सीधा ही तना रहा, जरा भी नहीं झुका। खुद पीछे रहकर वह राम का यश फहराता रहा। राम बड़े-बड़े दुर्धर काम लक्ष्मण से करवाते। सीता को वन में छोड़ने का काम अंत में लक्ष्मण को ही सौंपा गया। बेचारा लक्ष्मण सीता को पहुँचा आया। लक्ष्मण कोई स्वतंत्र अस्तित्व ही नहीं रह गया था। वह राम की आंखें‚ राम के हाथ-पांव‚ राम का मन बन गया था। जिस तरह नदी समुद्र में मिल जाती है, उसी तरह लक्ष्मण की सेवा राम में मिल गयी थी। वह राम की छाया बन गया था। लक्ष्मण की यह भक्ति सगुण थी।
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