दसवां अध्याय
विभूति-चिंतन
53. प्राणी स्थित परमेश्वर
16. और वह घोड़ाǃ कितना उम्दा‚ कितना ईमानदार‚ कितना वफादारǃ अरब लोग अपने घोड़ों से कितना प्यार करते हैंǃ उस अरब की कहानी आपको मालूम है न? वह विपत्तिग्रस्त अरब एक सौदागर को घोड़ा बेचने के लिए तैयार हो जाता है‚ परंतु घोड़े की उन गंभीर और प्रेमपूर्ण आंखों पर उसकी निगाह पड़ती है’ तो वह मोहरों की थैली फैंक देता है और कहता है कि "मेरी जान चली जाये‚ पर मैं घोड़ा नहीं बेचूंगा। मेरा जो होगा‚ सो होगा। खाना न मिलेगा‚ तो न सही। खुदा मेरी मदद करेगा।" पीठ थपथपाते ही वह कैसे प्रेम से फुरफुराता हैǃ कैसा बढ़िया उसका आयालǃ सचमुच घोड़े में अनमोल गुण हैं। उन साइकिल में क्या रखा है? घोड़े को खरहरा करो‚ वह तुम्हारे लिए जान दे देगा। तुम्हारा साथी होकर रहेगा। मेरा एक मित्र घोड़े पर बैठना सीख रहा था। घोड़ा उसे गिरा देता। वह मुझसे कहने लगा– "घोड़ा तो बैठने ही नहीं देता।" मैंने उससे कहा– "तुम सिर्फ घोड़े पर बैठने ही जाते हो या उसकी कुछ सेवा भी करते हो? सेवा करे दूसरा और पीठ पर सवारी करो तुम‚ ऐसा कैसे चलेगा? तुम स्वयं उसे दाना–पानी दो‚ खरहरा करो और तब सवारी करो।" वह मित्र यही करने लगा। कुछ दिनों बाद मुझसे आकर बोला– "अब घोड़ा गिराता नहीं।" घोड़ा तो परमेश्वर है। वह भक्तों को क्यों गिरायेगा? उसकी भक्ति देखकर घोड़ा झुक गया। घोड़ा जानना चाहता है कि यह भक्त है या कोई पराया आदमी? भगवान श्रीकृष्ण स्वयं खरहरा करते थे और अपने पीतांबर में दाना लाकर उसे खिलाते थे। टेकरी आयी‚ नाला आया‚ कीचड़ आया कि साइकिल रुकी‚ मगर घोड़ा कूदता–फांदता चला ही जाता है। यह सुंदर प्रेममय घोड़ा मानो परमेश्वर की ही मूर्ति है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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