गीता-प्रवचन -विनोबा पृ. 110

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दसवां अध्याय
विभूति-चिंतन
53. प्राणी स्थित परमेश्वर


15. और हमारे घर के मवेशी। वह गो-माता कितनी वत्सल‚ कितनी ममतामयी और प्रेममयीǃ दो–दो‚ तीन–तीन मील से‚ जंगल–झाड़ियों से अपने बछड़ों के लिए कैसी दौड़ी चली आती हैǃ वैदिक ऋषियों को‚ पहाड़ों-पर्वतों से स्वच्छ जल-धाराओं को लेकर कल-कल करती हुई दौड़ी आने वाली‚ उन नदियों को देखकर बछ़डों के लिए दूध-भरे स्तनों से रंभाती हुई आने वाली वत्सल गायों की याद हो आती है। ऋषि नदी से कहता है– "हे देविǃ दूध की तरह पवित्र‚ मधुर जल लाने वाली तू धेनु जैसी है। जैसे गाय बछड़े को छोड़कर जंगल में नहीं रह सकती वैसे तू भी पर्वतों में नहीं रह सकती। तू सरपट दौड़ती हुई प्यासे बालकों से मिलने के लिए आती है।" वाश्रा इव धेनवः स्यंदमानाः। वत्सल गाय के रूप में भगवान दरवाजे पर खड़ा है।

16. और वह घोड़ाǃ कितना उम्दा‚ कितना ईमानदार‚ कितना वफादारǃ अरब लोग अपने घोड़ों से कितना प्यार करते हैंǃ उस अरब की कहानी आपको मालूम है न? वह विपत्तिग्रस्त अरब एक सौदागर को घोड़ा बेचने के लिए तैयार हो जाता है‚ परंतु घोड़े की उन गंभीर और प्रेमपूर्ण आंखों पर उसकी निगाह पड़ती है’ तो वह मोहरों की थैली फैंक देता है और कहता है कि "मेरी जान चली जाये‚ पर मैं घोड़ा नहीं बेचूंगा। मेरा जो होगा‚ सो होगा। खाना न मिलेगा‚ तो न सही। खुदा मेरी मदद करेगा।" पीठ थपथपाते ही वह कैसे प्रेम से फुरफुराता हैǃ कैसा बढ़िया उसका आयालǃ सचमुच घोड़े में अनमोल गुण हैं। उन साइकिल में क्या रखा है? घोड़े को खरहरा करो‚ वह तुम्हारे लिए जान दे देगा। तुम्हारा साथी होकर रहेगा। मेरा एक मित्र घोड़े पर बैठना सीख रहा था। घोड़ा उसे गिरा देता। वह मुझसे कहने लगा– "घोड़ा तो बैठने ही नहीं देता।" मैंने उससे कहा– "तुम सिर्फ घोड़े पर बैठने ही जाते हो या उसकी कुछ सेवा भी करते हो? सेवा करे दूसरा और पीठ पर सवारी करो तुम‚ ऐसा कैसे चलेगा? तुम स्वयं उसे दाना–पानी दो‚ खरहरा करो और तब सवारी करो।" वह मित्र यही करने लगा। कुछ दिनों बाद मुझसे आकर बोला– "अब घोड़ा गिराता नहीं।" घोड़ा तो परमेश्वर है। वह भक्तों को क्यों गिरायेगा? उसकी भक्ति देखकर घोड़ा झुक गया। घोड़ा जानना चाहता है कि यह भक्त है या कोई पराया आदमी? भगवान श्रीकृष्ण स्वयं खरहरा करते थे और अपने पीतांबर में दाना लाकर उसे खिलाते थे। टेकरी आयी‚ नाला आया‚ कीचड़ आया कि साइकिल रुकी‚ मगर घोड़ा कूदता–फांदता चला ही जाता है। यह सुंदर प्रेममय घोड़ा मानो परमेश्वर की ही मूर्ति है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता प्रवचन -विनोबा
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
1. प्रास्ताविक आख्यायिका : अर्जुन का विषाद 1
2. सब उपदेश थोड़े में : आत्मज्ञान और समत्वबुद्धि 9
3. कर्मयोग 20
4. कर्मयोग सहकारी साधना : विकर्म 26
5. दुहरी अकर्मावस्था : योग और सन्यास 32
6. चित्तवृत्ति-निरोध 49
7. प्रपत्ति अथवा ईश्वर-शरणता 62
8. प्रयाण-साधना : सातत्ययोग 73
9. मानव-सेवारूप राजविद्या समर्पणयोग 84
10. विभूति-चिंतन 101
11. विश्वरूप–दर्शन 117
12. सगुण–निर्गुण–भक्ति 126
13. आत्मानात्म-विवेक 141
14. गुणोत्कर्ष और गुण-निस्तार 159
15. पूर्णयोग : सर्वत्र पुरूषोत्तम-दर्शन 176
16. परिशिष्ट 1- दैवी और आसुरी वृत्तियों का झगड़ा 188
17. परिशिष्ट 2- साधक का कार्यक्रम 201
18. उपसंहार- फलत्याग की पूर्णता-ईश्वर-प्रसाद 216
19. अंतिम पृष्ठ 263

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