गिरि पर चढि टेरत ग्वालनि सौ कौनै बन तुम गाइ बिडारी।
पसु पच्छी अति करति कुलाहल बीथिनि सघन भई उँजियारी।।
कटि किंकिनि-कचन-नूपुर-धुनि तिनके सब्द रहे गुजारी।
कोटि प्रकास भयौ रवि ससि कौ या बन मैं कोउ गोप कुमारी।।
आई भलैं जानि जिनि पावै पूरन इच्छा भई हमारी।
माँगौ जाइ दान सबहिनि पै बोलौ बचन मधुर सुखकारी।।
उनमैं तौ वृषभानु नदिनी दैहै स्याम सबनि कौ गारी।
'सूरदास' प्रभु प्रगटि ग्वारिनिनि लेहु दान तुमही अधिकारी।। 66 ।।