गिरिवर स्याम की अनुहारि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नट


गिरिवर स्याम की अनुहारि।
करत भोजन अधिक रुचि यह, सहस भुजा पसारि।।
नंद कौ कर गहे ठाढ़ै यहै, गिरि कौ रुप।
सखी ललिता राधिका सौं कहति देखि स्वरूप।।
यहै कुंडल, यहै माला, यहै पीत पिछौरि।
सिखर सोभा स्याम की छबि, स्याम-छबि गिरि जोरि।।
नारि बदरौला रही, वृषभानु-घर रखवारि।
तहाँ तैं उहिं भोग अरप्यौ, लियौ भुजा पसारि।।
राधिका-छबि देखि भूली, स्याम निरखैं ताहि।
सूर प्रभु-बस भई प्यारी, कोर-लोचन चाहि।।837।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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