गाउँ बसत एते दिवसनि मैं, आजु कान्ह मैं देखे।
जे दिन गए बिना हरि-दरसन ते सब वृथा अलेखे।।
कहियै जो कछु होइ सखी री, कहिबे के अनुमानैं।
सुंदर स्याम निकाई कौ सुख, नैना ही पै जानैं।।
तब तैं रूप ठगौरी लागी, जुग समान पल बितवत।
तजि कुल-लाज सूर प्रभु के मुख-तन फिरि-फिरि चितवत।।730।।