गर्ग संहिता
माधुर्य खण्ड : अध्याय 9
एकादशी के व्रत से ही राजा मांधाता, सगर, कुकुत्स्थ और महामति मुचुकुन्द पुण्यलोक को प्राप्त हुए। धुन्धुमार आदि अन्य बहुत-से राजाओं ने भी एकादशी-व्रत के प्रभाव से ही सद्गति प्राप्त की तथा भगवान शंकर ब्रह्मकपाल से मुक्त हुए। कुटुम्बीजनों से परित्यक्त महादुष्ट वैश्य–पुत्र धृष्ट बुद्धि एकादशी व्रत करके ही वैकुण्ठलोक में गया था। राजा रूकमांगद ने भी एकादशी का व्रत किया था और उसके प्रभाव से भूमण्डल का राज्य भोगकर वे पुरवासियों सहित वैकुण्ठ लोक में पधारे थे। राजा अम्बरीष ने भी एकादशी का व्रत किया था, जिससे कहीं भी प्रतिहत न होने वाला ब्रह्मशाप उन्हें छू न सका। हेमामाली नामक यक्ष कुबेर के शाप से कोढी हो गया था, किंतु एकादशी-व्रत का अनुष्ठान करके वह पुन: चन्द्रमा के समान कान्तिमान हो गया। राजा महीजित ने भी एकादशी का व्रत किया था, जिसके प्रभाव से सुन्दर पुत्र प्राप्तकर वे स्वयं भी वैकुण्ठगामी हुए। राजा हरिशचन्द्र ने भी एकादशी का व्रत किया था, जिससे पृथ्वी का राज्य भोगकर वे अन्त में पुरवासियों सहित वैकुण्ठ-धाम को गये। पूर्वकाल के सत्ययुग में राजा मुचुकुन्द का दामाद शोभन भारतवर्ष में एकादशी का उपवास करके उसके पुण्य-प्रभाव से देवताओं के साथ मन्दराचल पर चला गया। वह आज भी वहाँ अपनी रानी चन्द्रभागा के साथ कुबेर की भाँति राज्य सुख भोगता है। गोपियो ! एकादशी को सम्पूर्ण तिथियों की परमेश्वरी समझो। उसकी समानता करने वाली दूसरी कोई तिथि नहीं है। श्रीनारदजी कहते हैं– राजन ! श्रीराधा के मुख से इस प्रकार एकादशी की महिमा सुनकर यज्ञसीता-स्वरूपा गोपिकाओं ने श्रीकृष्ण-दर्शन की लालसा से विधिपूर्वक एकादशी व्रत का अनुष्ठान किया। एकादशी व्रत से प्रसन्न हुए साक्षात भगवान श्रीहरि ने मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा की रात में उन सबके साथ रास किया। इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता में माधुर्य खण्ड के अन्तर्गत श्रीनारद बहुलाश्व संवाद में यज्ञसीतोपाख्यान के प्रसंग में ‘एकादशी का माहात्म्य’ नामक नवाँ अध्याय पूरा हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |