गर्ग संहिता
गोलोक खण्ड : अध्याय 5
मेरे अंशभूत राजा पृथु बड़े प्रतापी थे। उन महाराज ने सम्पूर्ण शत्रुओं को जीतकर पृथ्वी से सारी अभीष्ट वस्तुओं का दोहन किया था। उस समय बर्हिष्मती नगरी में रहने वाली बहुत-सी स्त्रियाँ उन्हें देखकर मुग्ध हो गयीं और प्रेमसे विह्वल हो अत्रिजी के पास जाकर बोलीं- ‘महामुने ! समस्त राजाओं में श्रेष्ठ महाराजा पृथु बड़े ही पराक्रमी हैं। ये किस प्रकार से हमारे पति होंगे ? यह बताने की कृपा कीजिये’। अत्रिजी ने कहा- तुम सब शीघ्र ही आज इस गौको दुहो। यह सम्पूर्ण पदार्थों को धारण करने वाली धारणामयी धरणी देवी है। तुम्हारे सारे मनोरथों को चाहे वे समुद्र के समान अगाध, अपार एवं दुर्गम ही क्यों न हों- अवश्य पूर्ण कर देंगी। ब्रह्मन ! तब उन स्त्रियों ने मन को दोहन-पात्र बनाकर अपने मनोरथों का दोहन किया। इसी कारण से वे सब की सब वृन्दावन में गोपियाँ होंगी। बहुत सी श्रेष्ठ अप्सराएँ, जिनका रूप अत्यंत मनोहर था और जो कामदेव की सेनाएँ थी, भगवान नारायण ऋषि को मोहित करने के लिये गन्धमादन पर्वत पर गयीं। परंतु उन्हें देखकर वे भी अपनी सुध-बुध खो बैठीं। उनके मन में भगवान को पति बनाने की इच्छा उत्पन्न हो गयी। तब सिद्धतपस्वी नारायण मुनि ने कहा- ‘तुम व्रज में गोपियाँ होओगी और वहीं तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा’। ब्रह्मन ! सुतल देश की स्त्रियाँ भगवान वामन को देखकर उन्हें पाने के लिये उत्कट इच्छा प्रकट करने लगीं। फिर तो उन्होंने तपस्या आरम्भ कर दी। जिन नागराज कन्याओं ने शेषावतार भगवान को देखकर उन्हें पति बनाने की इच्छा से उनकी सेवा-समाराधना की हैं, वे सब वलदेवजी के साथ रास विहार करने के लिये व्रज में उत्पन्न होंगी। कश्यप जी वसुदेव होंगे ! परम पूजनीय अदिति देवकी के रूप में अवतार लेंगी। प्राण नामक वसु शूरसेन और ‘ध्रुव’ नामक उद्धव के रूप में प्राकय होगा। दयापरायण दक्ष प्रजापति, अक्रूर के रूप में अवतार लेंगे। कुबेर हृदीक नाम से और जल के स्वामी वरुण कृतवर्मा नाम से प्रसिद्ध होंगे। पुरातन राजा प्राचीनबर्हि गद एवं मरुत देवता उग्रसेन बनेंगे। उन उग्रसेन को मैं विधानत: राजा बनाऊँगा और उनकी भलीभाँति रक्षा करूँगा। भक्त राजा अम्बरीष युयुधान और भक्तप्रवर प्रह्लाद सात्यकि के नाम से प्रकट होंगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |