गर्ग संहिता
गोलोक खण्ड : अध्याय 4
अहो ! भूमण्ड ल पर दुर्जनों का होना बहुत ही दु:खदायी है। जब-जब कमललोचन श्रीराम यज्ञ करते थे, तब-तब विधिपूर्वक सुवर्णमयी सीता की प्रतिमा बनायी जाती थी। इसलिये श्रीराम-भवन में यज्ञ-सीताओं का एक समूह ही एकत्र हो गया। वे सभी दिव्य चैतन्य-घनस्वरूपा होकर श्रीराम के पास गयीं। उस समय श्रीराम ने उनसे कहा- ‘प्रियाओं ! मैं तुम्हें स्वीकार नहीं कर सकता।’ वे सभी प्रेम परायणा सीता-मूर्तियाँ दशरथ नन्दन श्रीराम से कहने लगीं- ‘ऐसा क्यों ? हम तो आपकी सेवा करने वाली हैं। हमारा नाम भी मिथिलेश कुमारी सीता है और हम उत्तम व्रत का आचरण करने वाली सतियाँ भी हैं; फिर हमें आप ग्रहण क्यों नहीं करते ? यज्ञ करते समय हम आपकी अर्धांगिनी बनकर निरंतर कार्यों का संचालन करती रही हैं। आप धर्मात्मा और वेद के मार्ग का अवलम्बन करने वाले हैं, यह अधर्मपूर्ण बात आपके श्रीमुख से कैसे निकल रही है ? यदि आप स्त्री का हाथ पकड़-कर उसे त्यागते हैं तो आपको पाप का भागी होना पड़ेगा। श्रीराम बोले- सतियों ! तुमने मुझसे जो बात कही है, वह बहुत ही उचित और सत्य है। परंतु मैंने ‘एकपत्निव्रत’ धारण कर रखा है ? सभी लोग मुझे ‘राजर्षि’ कहते हैं। अत: नियम को छोड़ भी नहीं सकता। एकमात्र सीता ही मेरी सहधर्मिणी है। इसलिये तुम सभी द्वापर के अंत में श्रेष्ठ वृन्दावन में पधारना, वहीं तुम्हारी मन:कामना पूर्ण करूँगा। भगवान श्रीहरि ने कहा- ब्रह्मन ! वे यज्ञ-सीता ही व्रज में गोपियाँ होंगी। अन्य गोपियों का भी लक्षण सुनो। इस प्रकार श्रीगर्गसंहिता में गोलोक खण्डन के अंतर्गत भगवद ब्रह्म संवाद में ‘अवतार के उद्योग विषयक प्रश्न का वर्णन’ नामक चौथा अध्याय पूरा हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |