गर्ग संहिता
गिरिराजखण्ड : अध्याय 7
श्रीहरि लीला युक्त जो 'कदम्ब खण्ड' नामक तीर्थ है, वहाँ सदा ही श्रीकृष्ण लीलारत रहते हैं। इस तीर्थ का दर्शन करने मात्र से नर नारायण हो जाता है। मैथिली ! जहाँ गोवर्धन पर रास में श्रीराधा ने श्रृंगार धारण किया था, वह स्थान 'श्रृंगार मण्डल' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। नरेश्वर ! श्रीकृष्ण ने जिस रूप से गोवर्धन पर्वत को धारण किया था, उनका वही रूप श्रृंगार मण्डल तीर्थ में विद्यमान है। जब कलियुग के चार हजार आठ सौ वर्ष बीत जायेंगे, तब श्रृंगार मण्डल क्षेत्र में गिरिराज की गुफा के मध्य भाग से सबके देखते-देखते श्रीहरि का स्वत: सिद्ध रूप प्रकट होगा। नरेश्वर ! देवताओं का अभिमानचूर करने वाले उस स्वरूप को सज्जन पुरुष 'श्रीनाथजी' के नाम से पुकारेंगे। राजन ! गोर्वधन पर्वत पर श्रीनाथ जी सदा ही लीला करते हैं। मैथिलेन्द्र ! कलियुग में जो लोग अपने नेत्रों से श्रीनाथ जी के रूप का दर्शन करेंगे, वे कृतार्थ हो जायेंगे ।।22-32।। भगवान भारत को चारों कोनों में क्रमश: जगन्नाथ, श्रीरंगनाथ, श्रीद्वारकानाथ और श्रीबद्रीनाथ के नाम से प्रसिद्ध है। नरेश्वर ! भारत के मध्य भाग में भी वे गोवर्धनाथ के नाम से विद्यमान हैं। इस प्रकार पवित्र भारत वर्ष में यह रहते हैं। उन सबका दर्शन करके नर नारायण हो जाता है। जो विद्वान पुरुष इस भूतल पर चारों नाथों की यात्रा करके मध्यवर्ती देवदमन श्रीगोवर्धननाथ का दर्शन नहीं करता, उसे यात्रा का फल नहीं मिलता। जो गोवर्धन पर्वत पर देवदमन श्रीनाथ का दर्शन कर लेता है, उसे पृथ्वी पर चारों नाथों की यात्रा का फल प्राप्त हो जाता है। मैथिल ! जहाँ ऐरावत और सुरभि गौके चरणों के चिन्ह है, वहाँ नमस्कार करके पापी मनुष्य भी वैकुण्ठ धाम में चला जाता है। जो कोई भी मनुष्य महात्मा श्रीकृष्ण के हस्तचिन्ह का और चरणचिन्ह का दर्शन कर लेता है, वह साक्षात श्रीकृष्ण के धाम में जाता है। नरेश्वर ! ये तीर्थ, कुण्ड और मन्दिर गिरिराज के अंगभूत है, उनको बता दिया, अब और क्या सुनना चाहते हो । इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता में श्रीगिरिराज खण्ड के अन्तर्गत श्रीनारद बहुलाश्व संवाद में ‘श्रीगिरिराज के तीर्थों का वर्णन' नामक सातवां अध्याय पूरा हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |