गर्ग संहिता
गिरिराजखण्ड : अध्याय 5
गोप बोले – राजन् ! महामते ! यदि तुम नन्दराज को नहीं छोड़ोगे तो हम सब व्रजवासी तुम्हें छोड़ देंगे। तुम्हारे घर में कन्या बडी आयु की होकर विवाह के योग्य हो गयी है और तुमने हमारी जाति के प्रधान होकर भी धन-सम्पत्त्िा के मद से मतवाले हो अब तक उसे किसी श्रेष्ठ वर के हाथ में नहीं सौंपा है, इसलिये तुम्हारे उपर पाप चढ़ा हुआ है। महामते नरेश ! आज से हम तुम्हें जाति भ्रष्ट तथा अपने से अलग मान लेंगे, नहीं तो शीघ्र नन्दराज को छोड़ दो, छोड़ दो। वृषभानुवर ने कहा– गोपगण ! मैं एकाग्रचित्त होकर गर्गजी की कही हुई बात बता रहा हूँ, जिससे शीघ्र ही तुम्हारी चिन्ता-व्यथा दूर हो जायेगी। उन्होनें बताया- 'असंख्य ब्रह्माण्डों के अधिपति, लोकेश्वर, परात्पर भगवान श्रीकृष्ण नन्दगृह में बालक होकर अवतीर्ण हुए हैं। उनसे बढ़कर श्रीराधा के लिये कोई वर नहीं है। ब्रह्माजी की प्रार्थना से भूमिका भार उतारने ओर कंसादि के वध करने के लिये भूतल पर श्रीकृष्ण का अवतार हुआ है। गोलोक में 'श्रीराधा' नाम की जो श्रीकृष्ण की पटरानी हैं, वे ही तुम्हारी घर में कन्या रूप से अवतीर्ण हुई हैं। उन 'परा देवी' को तुम नहीं जानते। मैं इन दोनों का विवाह नहीं कराऊँगा। इनका विवाह यमुनातट पर भाण्डीर-वन में होगा। वृन्दावन के समीप निर्जन सुन्दर स्थल में साक्षात ब्रह्माजी पधारकर श्रीराधा तथा श्रीकृष्ण विवाह-कार्य सम्पन्न करायेंगे। अत: गोपप्रवर ! तुम श्रीराधा को लोकचूडामणि साक्षात परमात्मा श्रीकृष्ण की अर्धांगस्वरूप एवं गोलोक धाम की महारानी समझो। तुम समस्त गोपगण भी गोलोक में इस भूतल पर आये हो। इसी तरह गोपियाँ और गौएं भी श्रीराधा की इच्छा से ही गोलोक से गोकुल में आयी है।' यों कहकर साक्षात महामुनि गर्गाचार्य जब चले गये, उसी दिन से श्रीराधा के विषय में मैं कभी कोई संदेह या शंका नहीं करता। इस भूतल पर ब्राह्मण वचन वेदवाक्यवत प्रमाण हैं। गोपों ! यह सब रहस्य मैंने तुम्हें सुना दिया, अब और क्या सुनना चाहते हो? इस प्रकार श्रीगर्ग-संहिता में गिरिराज खण्डं के अन्तर्गत श्रीनारद बहुलाश्व् संवाद में ‘गोप विवाद’ नामक पाचवां अध्यारय पूरा हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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