गर्ग संहिता
वृन्दावन खण्ड : अध्याय 22
गोपियों ने कहा- माधव ! यदि हम पर प्रसन्न हों तो क्षीर सागर में शेष शय्या पर तुमने जो रूप धारण किया था, उसका हमें भी दर्शन कराओ। श्री नारद जी कहते हैं- तब ‘तथास्तु’ कहकर भगवान गोपी-समुदाय के देखते-देखते आठ भुजाधारी नारायण हो गये और श्रीराधा लक्ष्मीरूपा हो गयीं। वहीं चंचल तरंग मालाओं से मण्डित क्षीर सागर प्रकट हो गया। दिव्य रत्नमय मंगलरूप प्रासाद दृष्टिगोचर होने लगे। वहीं कमलनाल के सदृश श्वेत शेषनाग कुण्डली बाँधे स्थित दिखायी दिये, जो बाल सूर्य के समान तेजस्वी सहस्र फनों के छत्र से सुशोभित थे। उस शेष शय्या पर माधव सुख से सो गये तथा लक्ष्मीरूपधारिणी श्रीराधा उनके चरण दबाने की सेवा करने लगीं। करोड़ों सूर्यों के समान तेजस्वी उस सुन्दर रूप को देखकर गोपियों ने प्रणाम किया और वे सभी परम आश्चर्य में निमग्न हो गयीं। मैथिल! जहाँ श्रीकृष्ण ने गोपियों को इस रूप में दर्शन दिया था, वह परम पुण्यमय पापनाशक क्षेत्र बन गया। तदनंतर माधव गोपांगनाओं के साथ यमुना तट पर आकर कालिन्दी के वेग पूर्ण प्रवाह में संतरण-कला-केलि करने लगे। श्रीराधा के हाथ से उनका लक्षदल कमल और चादर लेकर माधव पानी में दौड़ते तथा हँसते हुए दूर निकल गये। तब श्रीराधा भी उनके चमकीले पीताम्बर, वंशी और बेंत लेकर हँसती हुई यमुना जल में चली गयीं। अब महात्मा श्रीकृष्ण उन्हें माँगते हुए बोले-‘राधे! मेरी बाँसुरी दे दो।’ श्रीराधा कहने लगीं- ‘माधव ! मेरा कमल और वस्त्र लौटा दो।’ श्रीकृष्ण ने श्रीराधा को कमल और वस्त्र दे दिये। तब श्रीराधा भी महात्मा श्रीकृष्ण को वंशी, पीताम्बर और बेंत लौटा दिये। तदनंतर श्रीकृष्ण आजानुलम्बिनी (घुटने तक लटकती हुई) वैजयंती माला धारण किये, मधुर गीता गाते हुए भाण्डीर वन में गये। वहाँ चतुर-चूड़ामणि श्याम सुन्दर ने प्रिया का श्रृंगार किया। भाल तथा कपोलों पर पत्र रचना की, पैरों में महावर लगाया, फूलों की माला धारण करायी, वेणी को भी फूलों से सजाया, ललाट में कुम्कुम की बिन्दी तथा नेत्रों में काजल लगाया। इसी प्रकार कीर्तिनन्दिनी श्रीराधा ने भी उस श्रृंगार-स्थल में चन्दन, अगुरु, कस्तूरी और केसर आदि से श्रीहरि के मुख पर मनोहर पत्र रचना की । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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