गर्ग संहिता
वृन्दावन खण्ड : अध्याय 19
इसी समय बहुत-सी गोपांगनाएँ श्रीकृष्ण की सेवा में उपस्थित हुई। कोई गोलोकनिवासिनी थी, कोई शय्या सजाने में सहयोग करने वाली थीं। कोई श्रृंगार धारण कराने की कला में कुशल थीं, तो कोई द्वारपालिका थीं। कुछ गोपियाँ ‘पार्षद’ नामधारिणी थीं, कुछ छत्र-चँवर धारण करने वाली सखियाँ थीं और कुछ श्रीवृन्दावन की रक्षा में नियुक्त थीं। कुछ गोवर्धनवासिनी, कुछ कुंजविधायनी और कुछ निकुंज निवासिनी थीं। कोई नृत्य में निपुण और कोई वाद्य-वादन में प्रवीण थीं। नरेश्वर! उन सबके मुख अपने सौन्दर्य-माधुर्य से चन्द्रमा को भी लज्जित करते थे। वे सब-की-सब किशोरावस्था वाली तरूणियाँ थी। इन सबके बारह यूथ श्रीकृष्ण के समीप आये। इसी प्रकार साक्षात यमुना भी अपना यूथ लिये आयी। उनके अंगों पर नीलवस्त्र शोभा पा रहे थे। वे रत्न मय आभूषणों से विभूषित तथा श्यामा (सोलह वर्ष की अवस्था अथवा श्याम कांति से युक्त) थी। उनके नेत्र प्रफुल्ल कमल दल को तिरस्कृत कर रहे थे। उन्हीं की तरह जहनन्दिनी गंगा भी यूथ बाँधकर वहाँ आ पहुँची। उनकी अंग-कांति श्वेत गौर थी। वे श्वेत वस्त्र तथा मोती के आभूषणों से विभूषित थी। वैसे ही साक्षात रमा भी अपना यूथ लिये आयी। उनके श्री अंगो पर अरूण वस्त्र सुशोभित थे। चन्द्रमा की सी अंग कांति, अधरों पर मन्द-मन्द हास की छटा तथा विभिन्न अंगो में पद्भरागमणि के बने हुए अलंकार शोभा दे रहे थे । इसी तरह कृष्ण पत्नि के नाम से अपना परिचय देने वाली मधुमाधवी (वसंत-लक्ष्मी) भी वहाँ आयी। उनके साथ भी सखियों का समूह था। वे सब-की-सब प्रफुल्ल कमल की सी अंग-कांतिवाली, पुष्पहार से अलंकृत तथा सुन्दर वस्त्रों से सुशोभित थी। इसी रीति से साक्षात विरजा भी सखियों का यूथ लिये वहाँ आयी। उनके अंगों पर हरे रंग के वस्त्र शोभा दे रहे थे। वे गौरवर्ण तथा रत्नमय अलंकारों से अलंकृत थी। ललिता, विशाखा और लक्ष्मी के भी यूथ वहाँ आये। इसी प्रकार अष्ट सखियों के, षोडश सखियों के तथा बत्तीस सखियों के सम्पूर्ण यूथ भी वहाँ आ पहुँचे। राजन ! भगवान श्यामसुन्दर श्रीकृष्ण उन युवती जनों के साथ रासमण्डल की रंगभूमि में बड़ी शोभा पाने लगे। जैसे आकाश में चन्द्रमा ताराओं के साथ सुशोभित होते हैं, उसी प्रकार श्रीवृन्दावन में उन सुन्दरियों के साथ श्रीकृष्णचन्द्र की शोभा हो रही थी। उनकी कमर में पीताम्बर कसा हुआ था। वे नट वेष में सबका मन मोहे लेते थे। उनके हाथ में बेंत की छड़ी थी। वे वंशी बजाकर उन गोप-सुन्दरियों की प्रीति बढ़ा रहे थे। माथे पर मोर पंख का मुकुट, वक्ष:स्थल पर पुष्पहार एवं वन माला तथा कानों में कुण्डल- ये ही उनके अलंकार थे। रति के साथ रतिनाथ की जैसी शोभा होती है, उसी प्रकार रासमण्डल में श्रीराधा के साथ राधावल्लभ की हो रही थी। इस प्रकार सुन्दरियों के अलाप से संयुक्त होकर साक्षात श्रीहरि अपनी प्रिया राधा के साथ यमुना के पुण्य-पुलिन पर आये। उन्होंने अपनी प्राणबल्लभ का हाथ अपने करकमल में ले रखा था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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