गर्ग संहिता
वृन्दावन खण्ड : अध्याय 10
नारद जी कहते हैं- नरेश्वर ! तब यशोदा ने बलराम और श्रीकृष्ण के मंगल के लिये ब्राह्मणों को बहुमूल्य नवरत्न और अपने अलंकार दिये। नन्द जी ने उस समय दस हजार बैल, एक लाख मनोहर गायें तथा दो लाख भार अन्न दान दिये। श्री नारद जी पुन: कहते हैं- राजन ! अब गोपों की इच्छा से बलराम और श्रीकृष्ण गोपालक हो गये। अपने मित्रों के साथ गाय चराते हुए वे दोनों भाई वन में विचरण करने लगे। उस समय श्रीकृष्ण और बलराम का सुन्दर मुँह निहारती हुई गौएँ उनके आगे-पीछे और अगल-बगल में विचरती रहती थीं। उनके गले में क्षुद्र घण्टिकाओं की माला पहनायी गयी थीं। सोने की मालाएँ भी उनके कण्ठ की शोभा बढ़ाती थीं। उनके पैरों में घुँघुरू बँधे थे। उनकी पूँछों के स्वच्छ बालों में लगे हुए मोरपंख और मोतियों के गुच्छे शोभा दे रहे थे। वे घंटों और नूपुरों के मधुर झंकार को फैलाती हुई इधर-उधर चरती थीं। चमकते हुए नूतन रत्नों की मालाओं के समूह से उन समस्त गौओं की बड़ी शोभा होती थी। राजन! उन गौओं के दोनों सींगों के बीच में सिर पर मणिमय अलंकार धारण कराये गये थे, जिनसे उनकी मनोहरता बढ़ गयी थी। सुवर्ण रश्मियों की प्रभा से उनके सींग तथा पार्श्व-प्रवेष्टन (पीठ पर की झूल) चमकते रहते थे। कुछ गौओं के भाल में किंचित रक्त वर्ण के तिलक लगे थे। उनकी पूँछें पीले रंग से रँगी गयी थीं और पैरों के खुर अरूण राग से रंजित थे। बहुत-सी गौएँ कैलास पर्वत के समान श्वेतवर्ण वाली, सुशीला, सुरूपा तथा अत्यंत उत्तम गुणों से सम्पन्न थी। मिथिलेश्वर ! बछड़े वाली गौएँ अपने स्तनों के भार से धीरे-धीरे चलती थीं। कितनों के थन घड़ों के बराबर थे। बहुत-सी गौएँ लाल रंग की थीं। वे सब-की-सब भव्य-मूर्ति दिखायी देती थी। कोई पीली, कोई चितकबरी, कोई श्यामा, कोई हरी, कोई ताँबे के समान रंग वाली, कोई धूमिल वर्ण की और कोई मेघों की घटा जैसी नीली थीं। उन सबके नेत्र घनश्याम श्रीकृष्ण की ओर लगे रहते थे। किन्हीं गौओं और बैलों के सींग छोटे, किन्हीं के बड़े तथा किन्हीं के ऊँचे थे। कितनों के सींग हिरनों के-से थे और कितनों के टेढ़े-मेढ़े। वे सब गौएँ कपिला तथा मंगल की धाम थीं। वन-वन में कोमल कमनीय घास खोज-खोजकर चरती हुई कोटि-कोटि गौएँ श्रीकृष्ण के उभय पार्श्वों से विचरती थीं। यमुना का पुण्य-पुलिन तथा उसके निकट श्याम तमालों से सुशोभित वृन्दावन नीप, कदम्ब, नीम, अशोक, प्रवाल, कटहल, कदली, कचनार, आम, मनोहर जामुन, बेल, पीपल और कैथ आदि वृक्षों तथा माधवी लताओं से मण्डित था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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